कार्तिक पूर्णिमा की शाम को विष्णु भगवान ये अवतार हुआ उपवास करने से हजार अश्वमेघ और सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता…

प्रयागराज, अयोध्या, वाराणसी, उज्जैन, म्ल्किकार्जुन, हरिद्वार आदि तीर्थ स्थानों में इसे बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। जागृत तीर्थ और भगवान राम के कारण समस्त देवी-देवताओं के प्रिय निवास स्थान चित्रकूट में स्थित कामदगिरि पर्वत पर इस दिन दीप ही दीप देखने में आते हैं। पापों को जलाने वाली मंदाकिनी के घाट पर भी दीपों की शृंखला मन मोह लेती है। कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली भी कहा जाता है, जो 23 नवंबर को है। वैसे पूर्णिमा तिथि 22 नवंबर की दोपहर से ही लग जाएगी। इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का बड़ा महत्व है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे महापर्व माना है। यहां देव प्रबोधिनी एकादशी के साथ ही दीप उत्सव शुरू होता है। आज ही शिव ने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर त्रिपुर दैत्य का वध किया था। कार्तिक पूर्णिमा को मोक्ष प्राप्ति कराने वाली पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन उपवास करने से हजार अश्वमेघ और सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।

कार्तिक पूर्णिमा पर अगर कृतिका नक्षत्र हो तो इसे महा कार्तिकी कहा जाता है और भरणी व रोहिणी नक्षत्र हो तो इसका विशेष फल मिलता है। कृतिका नक्षत्र में चंद्रमा हो और विशाखा नक्षत्र में सूर्य हो तो पद्मक नामक योग होता है।

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इस दिन चंद्रोदय के समय मंगल ग्रह के स्वामी भगवान कार्तिकेय की माताओं- शिवा, संभूति, प्रीति, संतति, अनसूया और क्षमा आदि छह कृत्तिकाओं का पूजन करना चाहिए। रात्रि में व्रत करके यदि वृष (बैल) का दान किया जाए तो शिव पद की प्राप्ति होती है। सत्ता बचाने और हासिल करने के लिए संघर्षरत नेताओं को आज के दिन अवश्य स्नान, दान, होम, यज्ञ और उपासना करनी चाहिए। गाय, घोड़ा और घी आदि का दान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जो लोग मेष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर और मीन लग्न में पैदा हुए हैं, उन्हें आज के दिन ही पूर्णिमा का नक्त व्रत शुरू कर साल की सभी पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। इससे विशेष लाभ होगा। जिन लोगों का मंगल नीच राशि कर्क में है, उन्हें इस दिन मंगल ग्रह के स्वामी कार्तिकेय की विशेष आराधना कृष्णा नदी के तट पर स्थित दूसरे ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन में जरूर करनी चाहिए।

कार्तिक पूर्णिमा, तुलसी विवाहोत्सव के पूरा होने की तिथि है। कार्तिक पूर्णिमा की शाम को ही विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था। ब्रह्मा जी का पुष्कर में आज के दिन ही अवतरण हुआ था। दुबारा जन्म न लेने की इच्छा हो तो आज की शाम- ‘कीटा: पतंगा मशकाश्च वृक्षे जले स्थले ये विचरन्ति जीवा:। दृष्टवा प्रदीपं न हि जन्मभागिनस्ते मुक्तरूपा हि भवन्ति तत्र॥’ मंत्र से दीपदान करना चाहिए।

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