UK में पारदर्शी व भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के लिए अब लोकायुक्त की नहीं है जरूरत, पढ़िए पूरी खबर

 प्रदेश में पारदर्शी व भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के लिए अब इस सरकार में शायद ही लोकायुक्त देखने को मिले। सरकार का लोकायुक्त के बिना भी ईमानदारी से सरकार चलाने का दावा इस ओर ही इशारा कर रहा है। दरअसल, सात साल से कई संशोधन के बाद प्रदेश में नया लोकायुक्त विधेयक विधानसभा की संपत्ति के रूप में बंद है। उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम वर्ष 2011 में पारित किया गया। इसे राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिल गई थी। सत्ता बदली तो नई सरकार ने इसमें संशोधन किया, जिसमें 180 दिन में लोकायुक्त के गठन के प्रविधान को खत्म कर दिया गया। इससे सरकार लोकायुक्त की नियत अवधि में नियुक्ति की बाध्यता से मुक्त हो गई। भाजपा सरकार ने फिर इसमें संशोधन किया। विपक्ष की सहमति के बावजूद इसे प्रवर समिति को सौंप दिया गया। समिति रिपोर्ट दे चुकी है लेकिन इसके बावजूद अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं हो पाया है।

राष्ट्रीय खेलों का इंतजार

छह साल पहले प्रदेश में जिन राष्ट्रीय खेलों के जरिये खिलाडिय़ों को एक अच्छा मंच मिलने की उम्मीद थी, उसका इंतजार और लंबा होता जा रहा है। कारण, वर्ष 2014 में यहां होने वाले राष्ट्रीय खेल साल दर साल खिसकने के बावजूद अभी तक नहीं हो पाए हैं। अब इन खेलों के वर्ष 2021 अथवा 2022 में होने की उम्मीद जताई जा रही है। दरअसल, इस वर्ष दिसंबर में राष्ट्रीय खेल गोवा में होने हैं। इसके बाद अगले वर्ष 37 वें राष्ट्रीय खेल छत्तीसगढ़ में प्रस्तावित हैं। उत्तराखंड को वर्ष 2014 में 38वें राष्टीय खेलों की मेजबानी मिली थी। इस दौरान आकलन किया गया कि राष्ट्रीय खेल 2015 में केरल, 2016 में गोवा, 2017 में छत्तीसगढ़ और वर्ष 2018 में उत्तराखंड में आयोजित किए जाएंगे। वर्ष 2015 में केरल में तो राष्ट्रीय खेलों का आयोजन हो गया लेकिन अभी तक अन्य कोई राज्य अपने यहां खेल नहीं करा पाया है।

निजी विवि फीस एक्ट

बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाकर अपने पैरों पर खड़ा करना हर मां-बाप का सपना होता है। इसके लिए वे क्षमता से अधिक खर्च करने तक को तैयार रहते हैं। बावजूद इसके आज भी उच्च शिक्षा के लिए अच्छे कॉलेज में बच्चे को प्रवेश दिलाना निम्न और मध्यम वर्ग के अभिभावकों के लिए चुनौती बना है। कारण, कॉलेजों की महंगी फीस। कई जगह तो फीस इतनी कि अभिभावक जीवनभर की पूंजी खर्च करने के बाद भी इन्हें पढ़ाई नहीं करवा पाते। सरकार ने अभिभावकों की इस पीड़ा को समझने का दावा किया। सभी निजी विश्वविद्यालयों के लिए फीस एक्ट बनाने की बात कही गई। कहा कि सरकार जो तय करेगी, वही फीस प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों को लागू करनी होगी। अभिभावक खुश हुए, सरकार की सराहना की। उम्मीद जगी कि अब उनकी जेब पर जबरन बोझ नहीं पड़ेगा। अफसोस, सरकार की यह बात एक घोषणा तक ही सिमट कर रह गई।

कृत्रिम बारिश अभी नहीं

उत्तराखंड में फायर सीजन के दौरान धू-धू कर जलते जंगलों को बचाने के लिए प्रदेश सरकार ने दो साल पहले क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम बारिश) तकनीक के उपयोग का निर्णय लिया। बाकायदा दुबई की एक कंपनी से बात हुई लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाई। दरअसल, 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में प्रतिवर्ष 15 फरवरी से मानसून के आगमन तक की अवधि (फायर सीजन) में जंगलों के धधकने से बड़े पैमाने पर वन संपदा तबाह होती रही है। आग के विकराल रूप धारण करने पर इसे काबू करने को विभाग के पास पुख्ता इंतजाम भी नहीं हैं। इसके लिए उसे आसमान की ओर ही ताकना पड़ता है। ऐसे में विभाग का ध्यान क्लाउड सीडिंग तकनीक की तरफ गया। सोचा, इसे अपनाने से जंगलों की आग बुझाने में तो मदद मिलेगी ही, सिंचाई में भी यह कारगर होगी। मौजूदा स्थिति में तो यह योजना आगे बढ़ती नजर नहीं आ रही है।

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