आज सावन का पहला सोमवार, इस विधि और मंत्र से प्रसन्न होते हैं शिव

आज सावन का पहला सोमवार, इस विधि और मंत्र से प्रसन्न होते हैं शिव

भगवान शिव के प्रिय मास सावन का प्रारंभ आज से हो गया है। इसमें सबसे अच्छी बात ये है कि आज सावन के पहले दिन ही सावन का पहला सोमवार व्रत है। सावन मास में पांच सोमवार पड़ रहे हैं। सावन मास में पांच सावन सोमवार व्रत का विशेष महत्व माना गया है। सावन सोमवार का व्रत रखने वालों के लिए यह उत्तम है। संतान प्राप्ति, उत्तम स्वास्थ्य और मनोवांछित जीवन साथी के लिए यह व्रत किया जाता है। भगवान शिव की आराधना से वैवाहिक जीवन के दोषों तथा अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं कि इस सावन के सोमवार किस तिथि को हैं, इस दिन भगवान शिव की पूजा कैसे करें, किन मंत्रों का जाप करें और व्रत की विधि क्या है?

इस वर्ष सावन के 5 सोमवार-

सावन का पहला सोमवार: 06 जुलाई, 2020

सावन का दूसरा सोमवार: 13 जुलाई, 20204

सावन की तीसरा सोमवार: 20 जुलाई, 2020

सावन का चौथा सोमवार: 27 जुलाई, 2020

सावन का पांचवां सोमवार: 03 अगस्त, 2020

पूजा का समय-

ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्टके अनुसार, सावन में भगवान शिव की पूजा के लिए कोई विशेष मुहूर्त नहीं होता है। राहुकाल या अन्य चीजें उनके लिए मायने नहीं रखती हैं। आप प्रात:काल में भगवान शिव और शक्ति की पूजा कर लें, य​ह उत्तम है या दिन में कभी भी।

सावन सोमवार व्रत एवं पूजा विधि-

आज के दिन प्रात:काल में स्नान आदि कर स्वच्छ हो लें। इसके बाद साफ कपड़े पहनें तथा पूजा स्थान की सफाई कर लें। भगवान शिव और माता पार्वती की तस्वीर या मूर्ति को गंगाजल से साफ कर लें। अब जल पात्र में गंगा जल मिला हुआ पानी भर लें। इसके पश्चात दाहिने हाथ में जल लेकर सावन सोमवार व्रत एवं पूजा का संकल्प करें।

अब ओम नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान शिव शंकर का जलाभिषेक करें। उनको अक्षत्, सफेद फूल, सफेद चंदन, भांग, धतूरा, गाय का दूध, धूप, पंचामृत, सुपारी आदि चढ़ाएं। कम से कम 12 बेलपत्र शिव जी को अर्पित करें। बेलपत्र चढ़ाते समय ओम नम: शिवाय शिवाय नम: मन्त्र का उच्चारण करें। अब ओम शिवायै नमः मंत्र से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। अब शिव चालीसा का पाठ करें तथा व्रत कथा सुनें। पूजा के अंत में भगवान शिव जी की आरती करें।

व्रती को दिनभर फलाहार करते हुए अच्छा आचरण करना चाहिए। संध्या के समय शिव पुराण का पाठ और संध्या आरती करें। इसके बाद प्रसाद वितरित करें और स्वयं ग्रहण करें तथा पारण कर लें। पूरे दिन तक व्रत करने में सक्ष्म न हों, तो सूर्यास्त के बाद पारण कर लें।

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