दीपांजन रॉय चौधुरी, मुंबई
हालांकि आगाज में देर हुई, लेकिन भारत दुनियाभर में बुनयादी ढांचे बनाने एवं आर्थिक उपक्रमों के लिए कर्ज देने के मामले में चीन का तेजी से पीछा कर रहा है।
मोदी सरकार ने साझेदार देशों के लिए कर्ज की राशि बढ़ाकर 24.2 अरब डॉलर (करीब 1558 अरब रुपये) तक कर दी है जो साल 2003 से 2014 के बीच महज 10 अरब डॉलर (करीब 643 अरब रुपये) थी। साल 2014 से 52 अलग-अलग कर्ज दिए गए हैं
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जबकि इस साल जॉर्डन के बादशाह और बेलारूस के राष्ट्रपति के भारत दौरे पर आने के बाद कुछ और कर्जों का ऐलान होना है। आधिकारिक सूत्रों ने ईटी को बताया कि अफ्रीका के प्रति भारत की नीति में आई गड़बड़ियों को सुधारते हुए सरकार ने पिछले दो सालों में 20 बड़े उपक्रम पूरे कर लिए हैं। विदेश मंत्रालय की डिवेलपमेंट पार्टनरशिप ऐडमिनिस्ट्रेशन विंग के जरिए संचालित कर्ज नीति के तहत अब फोकस सिर्फ क्षमता विस्तार पर नहीं रहकर महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स पर हो गया है। सूत्रों ने इसे प्रमाणित करने के लिए दो उदाहरण गिनाए, पहला- भारत-घाना मित्रता के प्रतीक स्वरूप घाना में राष्ट्रपति के दफ्तर और दूसरा- गांबिया में नैशनल असेंबली बिल्डिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण।
चीन ने पूरे महाद्वीप में द्विपक्षीय भागीदारी के ऐसे प्रतीक चिह्न खड़े कर रखे हैं। पूरे एशिया और अफ्रीका में चीन के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स पर करीबी नजर रखनेवाले एक एक्सपर्ट ने कहा, ‘ऐसी परियोजनाओं के राजनीतिक महत्व होते हैं जो दो देशों के बीच द्वीपक्षीय संबंधों को मजबूती प्रदान करने में बड़ी भूमिकी निभाती हैं।’ खास बात यह है कि चीन ऐसी परियोजनाओं के लिए मनमर्जी शर्तें थोपता है जबकि भारत स्थानीय आकांक्षाओं से तालमेल को तवज्जो देता है।
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