400 करोड़ रुपए, बिजली बैंकिंग में खर्च हो रहे हैं, बिजली के दाम बढ़ने पर विरोध…

बिजली की बैंकिंग यानी जरूरत से अधिक बिजली को अन्य राज्यों को देना। फिर तय समय पर उस बिजली को वापस लेना। इस पूरी प्रक्रिया को बिजली बैंकिंग कहते हैं। जिस पर मप्र की बिजली कंपनी तकरीबन 400 करोड़ रुपए सालाना खर्च करती है। बिजली दाम बढ़ने का विरोध करने वाले इसे फिजूलखर्ची मानते हैं। उनके मुताबिक ऐसे खर्च यदि रुक जाएं तो दाम बढ़ाने की जरूरत ही नहीं होगी। एडवोकेट राजेन्द्र अग्रवाल ने इस संबंध में मप्र विद्युत नियामक आयोग को शिकायत भी भेजी है।

क्या है मामला-  मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी प्रदेश की सरप्लस बिजली को बैंकिंग करती है। दरअसल प्रदेश में फरवरी-मार्च के बाद अक्टूबर तक डिमांड कम होती है। इस बीच प्रदेश में बिजली अधिक पैदा होती है जिसे अन्य राज्यों को दिया जाता है। इसमें उन राज्यों से बिजली बेची नहीं जाती बल्कि उस राज्य से रबी सीजन के वक्त दी गई बिजली वापस ली जाती है। इस प्रक्रिया में बिजली जिस लाइन से होकर गुजरती है उस पर खर्च देय होता है। मप्र से सामान्यतः पं.बंगाल और छत्तीसगढ़ को बिजली दी गई। इसके अलावा यूपी में भी बिजली गई। साल 2018-19 में 417.6 करोड़ यूनिट बिजली बैंकिंग की गई। जबकि मप्र ने 286.8 करोड़ यूनिट ही बिजली वापस ली। आयोग में आपत्ति लगाने वाले राजेन्द्र अग्रवाल ने दावा किया कि ट्रांसमिशन लाइन, ग्रिड और ट्रेडिंग शुल्क सब कुछ मिलाकर करीब एक रुपए यूनिट बिजली वापस लेने पर खर्च होता है। जिस हिसाब से बिजली कंपनी बैंकिंग की कुल बिजली वापस लेगा तो उसे 400 करोड़ रुपए खर्च करना होगा।

एडवांस में क्यों बैंकिंग-  एडवोकेट राजेन्द्र अग्रवाल ने मप्र विद्युत नियामक आयोग को भेजी शिकायत में कहा कि बैंकिंग के नाम पर प्रदेश पहले पॉवर प्लांट से नगद में बिजली खरीदता है। करीब 8 माह बाद उस बिजली को वापस लेते हैं। राजेन्द्र अग्रवाल ने कहा कि 8 माह पहले करोड़ों रुपए खर्च कर बिजली बैंकिंग की जाती है। ये जनता के पैसे का गलत उपयोग है। उनका दावा है कि बिजली कंपनी बैंकिंग को लेकर याचिका में कोई खर्च संबंधी ब्यौरा जाहिर नहीं होता है।

बैंकिंग के नफा-नुकसान-  अतिरिक्त बिजली अन्य प्रदेशों को दी जाती है। ताकि जरूरत के वक्त उन प्रदेशों से वापस बिजली ली जा सके।नियामक आयोग से कोई भी बैंकिंग की विशिष्ट अनुमति नहीं ली जाती है। 2013-14 के टैरिफ आदेश में मप्र विद्युत नियामक आयोग ने बिजली प्रबंधन के आदेश दिए थे। उसी को आधार बनाकर अभी तक बैंकिंग हो रही है।

नुकसान-  बैंकिंग करने के बाद वापस बिजली लेने पर ओपन एक्सेस चार्ज और खुली निकासी शुल्क देय होता है। इसके अलावा पारेषण हानि लगेगी। सभी खर्च मिलाकर करीब सवा रुपए यूनिट बैंकिंग की गई बिजली वापस लेने पर आता है।

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