21 दिसंबर को मेरठ में रैली कर यूपी विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंकेंगे प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय नहीं होगा बल्कि छोटी-छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ेंगे।

उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव द्वारा मुझे एक सीट या फिर कैबिनेट मंत्री पद देना एक मजाक है। हम आगामी 21 दिसंबर को मेरठ में रैली कर यूपी विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंकेंगे। इसके बाद गांव-गांव में पद यात्रा करेंगे।

शिवपाल ने बताया कि 21 दिसंबर को मेरठ के सिवाल खास विधानसभा क्षेत्र में रैली करेंगे। इसके बाद 23 दिसंबर को इटावा के हैवरा ब्लॉक में चौधरी चरण सिंह के जन्मदिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन होगा।

इसके बाद 24 दिसंबर से गांव-गांव पदयात्रा की जाएगी जो कि अगले छह महीने तक चलेगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए प्रचार रथ तैयार किया जा रहा है।

शिवपाल सिहं यादव ने कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों का समर्थन किया और कहा कि कृषि विरोधी बिल के खिलाफ दिल्ली आ रहे पंजाब व हरियाणा के किसानों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने से रोका जा रहा है। कड़ाके की सर्दी के बावजूद उन पर आंसू गैस, लाठियां व वॉटर कैनन चलाया जा रहा है।

अन्नदाताओं पर ऐसा अमानवीय अत्याचार करने वालों को सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं है। लोकतंत्र में सांकेतिक विरोध प्रदर्शन का अधिकार सभी को है। यही लोकतंत्र की ताकत है। बड़ी सी बड़ी समस्याओं को बातचीत के द्वारा हल किया जा सकता है। जन आकांक्षा के दमन और लाठीचार्ज के लिए लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है ।

भाजपा सरकार में सबसे परेशान किसान हैं। उन्हें फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है। पिछले साल जो धान 2400 रुपये क्विंटल बिका था वह इस बार 1100 से 1300 रुपये के बीच बिक रहा है। गन्ने का समर्थन मूल्य पिछले कुछ सालों से एक रुपया भी नहीं बढ़ा है और अभी तक पिछले साल के गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं हुआ है।

नए कानूनों के तहत सरकार मंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को देना चाहती है। अधिकांश छोटे जोत के किसानों के पास न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ने की ताकत है और न ही वह इंटरनेट पर अपने उत्पाद का सौदा कर सकते हैं। इससे तो किसान बस अपनी जमीन पर मजदूर बन के रह जाएगा। इन कानूनों के तहत सरकार ने देश के अन्नदाताओं पर आजादी के बाद का सबसे बड़ा हमला किया है। सरकार के इन तथाकथित सुधारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई चर्चा नहीं है।

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