हर रोल में फिट रहे प्रणब दा, अब लेंगे राष्ट्रपति भवन से विदा

हर रोल में फिट रहे प्रणब दा, अब लेंगे राष्ट्रपति भवन से विदा

प्रणब मुखर्जी की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ ये तस्वीर 28 दिसंबर 1983 की है. कांग्रेस के ये दोनों वरिष्ठतम नेता पार्टी के कलकत्ता अधिवेशन में शामिल हुए थे. इंदिरा गांधी ने 1969 में बंगाल की राजनीति से प्रणब मुखर्जी का चुनाव किया और उन्हें पार्टी के कोटे से राज्यसभा पहुंचाया.हर रोल में फिट रहे प्रणब दा, अब लेंगे राष्ट्रपति भवन से विदा

कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के इस मंच पर प्रणब मुखर्जी के साथ पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव और पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलापति त्रिपाठी बैठे हैं. पंद्रह साल तक कांग्रेस आलाकमान के बेहद करीबी रहे प्रणब पार्टी के लिए हर संकट की घड़ी में सामने खड़े रहे. पार्टी आलाकमान से उन्हें कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना करने का जिम्मा मिला और हर बार उन्होंने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया.  

राष्ट्रपति भवन की इस तस्वीर में उप-राष्ट्रपति आर वेंकटरामन का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा है. कार्यक्रम में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ प्रणब मुखर्जी और वरिष्ठ नेता वीपी सिंह के साथ यूपी से एक और दिग्गज नेता कल्पनाथ राय दिखाई दे रहे हैं.

इंदिरा की इस आखिरी सरकार में प्रणब मुखर्जी सरकार के साथ-साथ पार्टी में खासा रसूख रखते थे. यदि प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए सिर्फ योग्यता, अनुभव और राजनीतिक कुशाग्रता मायने रखती तो इन 6 दशकों के दौरान प्रधानमंत्री पद की सबसे प्रबल दावेदारी किसी की रही तो वह प्रणव मुखर्जी थे.

यहां तक के सफर में पहली बार प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री पद के सबसे नजदीक पहुंचे. 31 अक्टूबर 1984 को जिस वक्त दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास पर इंदिरा गांधी को गोली मारी गई, प्रणब मुखर्जी राजीव गांधी के साथ बंगाल का दौरा कर रहे थे.

इंदिरा पर हमले की खबर राजीव गांधी को देने के बाद वह राजीव के साथ दिल्ली पहुंचे. दिल्ली पहुंचते ही राजीव गांधी को सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री पद और गोपनियता की शपथ दिलाने का प्रस्ताव आया और खुद प्रणब मुखर्जी को इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई.

1984 में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और प्रणब उनके सबसे बड़े मंत्री. इसके साथ ही राजीव गांधी को पार्टी की कमान भी दी गई और व्यवस्था जस की तस कायम रही. प्रणब मुखर्जी दोनों भूमिका में अपना महत्पूर्ण योगदान गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी को देते रहे.]

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1984 में मध्यावधि चुनावों के बाद राजीव गांधी की सरकार बनी. उनकी कैबिनेट लिस्ट में प्रणब मुखर्जी का नाम नहीं शामिल किया गया. मार्च 1985 में राजीव ने प्रणब को पश्चिम बंगाल कांग्रेस की जिम्मेदारी दी. लेकिन सितंबर 1985 में उनसे यह जिम्मेदारी छीनते हुए प्रियरंजन दास मुंशी को कार्यभार दे दिया गया.

गांधी परिवार के लिए कांग्रेस को सुरक्षित करने का सबसे बड़ा मौका प्रणब मुखर्जी के लिए तब आया जब राजीव गांधी की मौत के बाद हुए चुनाव में नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बने. सीताराम केसरी को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया. हालांकि केसरी की जगह प्रणब खुद पार्टी अध्यक्ष बनना चाहते थे लेकिन गांधी परिवार से नजदीकी के चलते राव को उनपर भरोसा नहीं हुआ.

सोनिया गांधी चाहती थीं कि एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की कमान उनके हाथ में आ जाए. इसके लिए सबसे अहम कड़ी मौजूदा पार्टी अध्यक्ष सीताराम केसरी थे क्योंकि पार्टी कार्यकारिणी की बैठक बुलाने का अधिकार उनके पास था और बिना इस बैठक को बुलाए बिना सोनिया गांधी को पार्टी की कमान देने का प्रस्ताव सामने नहीं लाया जा सकता था.

यह काम प्रणव मुखर्जी ने किया और कांग्रेस कार्यकारिणी बैठी और प्रस्ताव लाया गया जिसमें सोनिया को पार्टी की जिम्मेदारी दी गई. इस एक कदम ने प्रणब मुखर्जी को एक बार फिर कांग्रेस में वह दर्जा दिला दिया जो उन्हें इंदिरा के समय मिला था.

अब सोनिया की कांग्रेस में एक बार फिर प्रणब मुखर्जी उसी भूमिका में आ गए जब वह इंदिरा के दौर में पार्टी के सबसे अहम किरदार थे. राजीव गांधी ने जो गलती की उसे सोनिया ने दोहराया नहीं. सोनिया गांधी को वह दिन याद थे जब इंदिरा गांधी के साथ ब्रेकफास्ट टेबल पर बैठकर प्रणब मुखर्जी राजनीति की गंभीर बाते किया करते थे.

इसके बावजूद, एक बार फिर मौका आया और प्रधानमंत्री की दौड़ में प्रणब मुखर्जी सबसे आगे थे. लेकिन इस बार फिर उनकी खासियत ही उनके आड़े आ गई. इस बार मौका कभी उनके जूनियर रहे मनमोहन सिंह को मिल गया.

अब तक शायद प्रणब मुखर्जी को यकीन हो गया कि देश की सबसे ताकतवर कुर्सी पर उनका नाम नहीं लिखा जा सकता. लेकिन अपनी बाकी खूबियों के चलते वह लगातार कांग्रेस में वही भूमिका अदा करते रहे जिसके लिए दशकों पहले इंदिरा गांधी ने उन्हें पार्टी के टिकट से राज्य सभा पहुंचाया था.

प्रणब मुखर्जी का नाम सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाया. इस पेशकश के साथ कोशिश की गई कि प्रणव मुखर्जी को राजनीति में शीर्ष पद पर न बैठ पाने का मलाल न रहे.

अब प्रणब मुखर्जी अपने 6 दशक लंबें राजनीतिक सफर को पूरा कर रिटायरमेंट को गले लगाने जा रहे हैं. हाल में लिखी अपनी मेमॉयर में प्रणव साफ कर चुके हैं कि उनके हिसाब से अबतक देश का सबसे बेहतर प्रधानमंत्री कोई और नहीं इंदिरा गांधी हैं.

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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