शमशान में अघोरी लोग क्यों लेते हैं मानव का शव, जानकर कांप उठेगी आपकी रूह

अघोरी साधुओं का नाम सुनकर न जाने मन में कितने विचार आने लगते है। क्योकि अघोरी सांसारिक बंधनों को नहीं मानते और अधिकांश समय श्मशान में बिताते हैं। तो आइये जानते है अघोरी लोगों के बारे में। अघोर का अर्थ है जो घोर अर्थात विभत्स नहीं है।

यानी अघोरी वो लोग होते हैं जो संसार की किसी भी वस्तु को घोर यानी विभत्स नहीं मानते। इसलिए न तो वे किसी वस्तु से घृणा करते हैं और न ही प्रेम। उनके मन के भाव हर समय एक जैसे ही होते हैं। ये मल-मूत्र का सेवन भी उसी तरह से करते हैं जैसे कोई फल या मिठाई खा रहा हो।

अघोरी तांत्रिक श्मशान में ही तंत्र क्रियांए करते हैं। इनका मानना होता है कि श्मशान में ही शिव का वास होता है। अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं- श्मशान साधना, शिव साधना और शव साधना। ऐसा माना जाता है कि शव साधना के चरम पर मुर्दा बोल उठता है और इच्छाएं पूरी करता है।

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शव साधना – इस साधना के लिए एक खास काल में जलती चिता में शव के ऊपर बैठकर साधना की जाती है। यदि पुरूष साधक हो तो उसे स्त्री का शव और स्त्री साधक के लिए पुरूष का शव चाहिए होता है।

शिव साधना – शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है।

श्मशान साधना – श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस मंदिरा की जगह मावा चढाया जाता हैं। अघोरी लोगो का मानना होता है कि वे लोग जो दुनियादारी और गलत कार्यों के लिए तंत्र साधना करते है अतं में उनका अहित होता है।

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