राजा हरिश्चंद्र को अजा एकादशी व्रत से मिला था खोया हुआ परिवार और राजपाट

भाद्रपद के महीने में कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है. आज यानी 15 अगस्त (शनिवार) को अजा एकादशी का व्रत रखा जा रहा है. जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि अजा एकादशी का व्रत रखने वाले को अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है. उसकी हर मनोकामना की पूर्ति होती है. इसके अलावा आप जानते ही होंगे एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि की विधि-विधान से पूजा की जाती है. कहा जाता है कि अजा एकादशी का व्रत और पूजा करने वालों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. ऐसी मान्यता मानी गई है कि अजा एकादशी के दिन व्रत कथा सुनने या पढ़ने से श्रीहरि सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं. अब इस वजह से आज हम आपको बताने जा रहे हैं अजा एकादशी की सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कथा.

अजा एकादशी व्रत कथा – राजा हरिश्चंद्र अपने राज्य को प्रसन्न रखते थे. राज्य में चारों-ओर खुशहाली रहती थी. समय बिता और राजा का विवाह हुआ. राजा को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. राजा अत्यंत वीर और प्रतापी थे. एक दिन राजा ने अपने वचन को निभाने के लिए पुत्र और पत्नी तक को बेच दिया. राजा खुद भी एक चंडाल के सेवक बन गए. गौतम ऋषि राजा हरिश्चंद्र को इस संकट से निकलने का उपाय बताते हैं. राजा ने ऋषि-मुनि के कहे अनुसार अजा एकादशी का व्रत रखा और विधि-विधान से पूजन किया.

अजा एकादशी के व्रत से राजा के पिछले जन्म के सभी पाप कट जाते हैं और उन्हें खोया हुआ परिवार और राजपाट फिर से मिल जाता है. इसलिए सभी उपवासों में अजा एकादशी व्रत को सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है. कहते हैं कि अजा एकादशी व्रत रखने वालों को पापों से मुक्ति मिलती है. एकादशी व्रत को रखने वाले व्यक्ति को आहार, बर्ताव, इंद्रियों और चित पर संयम रखना होता है.

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