‘योगी जी, दिल दा मामला है… कुछ ते करो रहम’

योगी जी सूबे के सीएम क्‍या बने, चुनावी गुबार से पहले ही जवांदिलों का दिल बैठ गया.सोनम गुप्‍ता से अधिक योगी बाबा की बेवफाई की चर्चा हो रही है. एंटी-रोमियो दल का फरमान क्या आया, आशिकों की जान पर बन आई है.योगी-योगी का जयघोष करने वाले युवाओं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिसे बहुमत दिया, सीएम की कुर्सी पर बिठाया, वही बहू लाने के अरमान पर पानी फेर देगा. उसी के फरमान दिल की फांस बन जाएंगे.

प्‍यार और संस्‍कृति की दुश्‍मनी कोई नई बात नहीं. जमाना हमेशा से प्‍यार को लेकर बेरहम रहा है लेकिन इतनी बेदर्दी किसी ने नहीं दिखाई. समाज आड़े आया पर पुलिसिया खौफ कभी नहीं रहा. शास्‍त्र भी स्‍वीकारते हैं कि ‘इश्‍क वाला लव’ सनातन काल से अपरिवर्तनशील रहा है.

रोमियो ने वही किया जो राधा से कृष्‍ण ने किया. मजनू ने वही किया जो मीरा से मुरलीवाले नटवर ने किया. आदिकाल से इश्‍क की रेशमी डोर में गाहे-बगाहे सभी के पैर उलझते रहे हैं. प्रभु श्रीराम और नटवर कृष्‍ण भी नैनाचार से कहां अछूते रह पाए. आदम-हौआ, दुष्‍यंत-शकुंतला, विश्‍वामित्र-मेनका हर कोई कामदेव से प्रभावित होता रहा है.

संत-महात्‍मा तक के दिल अप्‍सराओं पर फिसलते रहे हैं. कालिदास को तो प्‍यार में लात तक खानी पड़ी. सूरदास को आंख तक फोड़नी पड़ी. मानस के रचयिता तुलसीदास को तो प्‍यार की ऐसी खुमारी छाई कि नदी-नाले, मुर्दा और सांप तक की सुध ना रही. लेकिन प्‍यार की किसी ने इस तरह की मुखालफत नहीं की. सूर, तुलसी, कबीर ने तो ढाई आखर पढ़ने को ही पंडित बनने की अनिवार्य शर्त बता. आधुनिक संतों ने भी ढाई आखर पर समय-समय पर अपनी मुहर लगाई.

स्‍वामी नित्‍यानंद से लेकर आसाराम तक सभी ने इसे अपने जीवन में उतारा. कुछ तो प्‍यार के भरोसे ही बिना शिलाजीत के ‘आशिकी-2’ खेल गए. हुस्‍न को लेकर क्‍या राजा, क्‍या प्रजा कोई विदेह नहीं रहा.

इंद्र से प्रभावित होकर कई नेताओं ने तो ‘हरम’ तक बना डाला. सूबे के पूर्व सीएम एनडी तिवारी को प्‍यार के डीएनए ने ही डायरेक्‍ट बाप बना दिया. प्‍यार ने ही थरूर को 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड दिला दी. बाबा गोरखनाथ के संदेश को ही माने तो वो हमेशा कहते रहे कि ‘नश्‍वर शरीर मिटता है, माया नहीं मिटती’… लेकिन योगीजी के फरमान से तो ‘माया’ से मिलने का जोग ही मिट गया है. निखालिस कुंवारा शरीर ही धरा पर रह गया है.

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गालिब का इश्‍क निकम्‍मा कर सकता है पर गलियों के शहर बनारस में तो घाट-घाट का पानी पीने की स्‍वस्‍थ परंपरा रही है. पंचगंगा घाट वाले अवधू गुरु कल तक योगी के गुन गा रहे थे, आज वह खासे नाराज हैं. गुरू देसी-विदेशी गोरियों के प्‍यार में कई बार पांचवें पायदान तक गए. दिल के रास्‍ते जिस्‍म जान तक घूम आए पर आज इतना खौफ उन्‍हें कभी नहीं रहा.

सत्‍यनारायण की दुकान पर चाय की चुस्‍की लेते हुए गुरू गुर्रा कर कहते हैं,’योगी तो बड़ा जबरा निकला यार, जबरा मारे भी और रोए भी न दे, वाली हाल कर दियौ’. कुंवारापन अभी ठीक से गयौ नहीं और इ तो दिल पर मूंग दलने लग गयौ.

सुरेश पहलवान भी सिर की कुंवारी शिखा पर हाथ फेरते हुए कहते हैं कि ‘इ तो उहे हाल हौ कि भैस ब्‍याये और बोदा का पेट चर्राये’. पहलवान मन ही मन सोच रहे हैं कि इस योगी को कौन समझाए कि प्‍यार में पैर फंसाने की क्‍या जरूरत थी.

प्‍यार पर आज तक किसी का जोर चला है क्‍या, यह तो बस हो जाता है. इसको जैसा वक्‍त मिलता है, वैसा इश्‍क फरमाता है. कोई जवानी के पहले अंजाम देता है- कोई भरी जवानी में आजमाता है. जिन्‍हें दोनों अवस्‍थाओं में मयस्‍सर नहीं होता वो बुढ़ापे में ट्राई मारते हैं. पर कोई अछूता नहीं रहता.

प्रेम गुरू तो रोमियो वाली इस नई विपदा को लेकर खासे परेशान हैं. दो दिन पहले ही दो हजारी नोट की लाली होठ पर देखकर श्रीमति जी बिफर पड़ी थी. बड़ी मुश्किल से समझा पाए थे कि होंठों पर किसी बाहरवाली की लिपिस्टिक का रंग नहीं, बल्कि थूक लगाकर दो हजारी नोट गिनने से लाली आई है. काफी मान-मनौव्‍वल के बाद घर में महाभारत होते-होते रूका. अब तो घरवाली के साथ-साथ वर्दीवाली पुलिस का भी डर सता रहा है. कौन जाने कब दारोगा रोमियो बना दे.

बालों पर खिजाब पुताए जर्नलिस्‍ट सरोज पांडेय कहते हैं. यार लोग तो इश्‍क के हिस्‍से के इतवार चाहते थे. इन्‍होंने तो आधी आबादी की सुरक्षा के नाम पर दिल ही आधा कर दिया.

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प्रोफेसर काशीनाथ सिंह काफी मंथन के बाद कहते हैं…’मैं शुरू से ही कहता रहा हूं कि समाज में बुराइयां अशिक्षित लोगों से नहीं, बल्कि प्रबुद्ध लोगों के चुप रहने से उपजती हैं. एंटी रोमियो दल का पुरजोर विरोध होना चाहिए. प्रबुद्ध लोगों का प्रतिनिधिमंडल बनाकर योगीजी से मिलना चाहिए. उन्‍हें बताना चाहिए कि प्‍यार मौलिक और नैसर्गिक है. दिल की बदत्‍तमीजी को दंड संहिता के दायरे में लाना ठीक नहीं.

कल्‍याण सिंह से लेकर येदियुरप्‍पा तक सभी ने इस पर सख्‍ती को नकारा है. इससे ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे को बल मिलता है. मेक इन इंडिया की तरह लोग चंगा रहते हैं. डिजिटल इंडिया की तरह नजरें जवान रहती हैं. तभी तो किसी शायर ने कहा है कि

‘हमेशा नजरें मिलाता हूं मैं हसीनों से

इसलिए नहीं लगती मेरी निगाह को जंग…’

(लेखक शिवजी राय फर्स्टपोस्ट से जुड़े हुए हैं  )

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