मौनी अमावस्या 2020 UP में मौनी अमावस्या के पर श्रद्धालुओं ने मौन रहकर लगाई आस्‍था की डुबकी

उत्‍तर प्रदेश में मौनी अमावस्या के अवसर पर श्रद्धालु आस्‍था की डुबकी लगाने के लिए शुक्रवार तड़के से ही श्रद्धालुओं की भीड़ घाटों पर जमा गई। जहां अमेठी जिले में मौनी अमावस्या के अवसर पर जामो स्थित बाबा झाम दास की कुटी पर श्रद्धालुओं ने आस्‍था की डुबकी लगाई। वहीं, रायबरेली में डलमऊ घाट पर श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई। एक के बाद एक अस्‍था की डुबकी लगाकर श्रद्धालुओं ने सूर्य भगवान को अर्घ देकर आशीर्वाद लिया। यह सिलसिला देरशाम तक जारी रहेगा। श्रद्धालु गहरे पानी में न जाने पाएं। इसके लिए घाटों पर डीप वाटर बैरीकेडिंग की गई है। 

उधर, गोंडा के पसका में सरयू तट पर श्रद्धालुओं ने स्नान किया। वहीं, सीतापुर में मौनी अमावस्या पर्व को लेकर नैमिषारण्य चक्रतीर्थ और आदि गंगा गोमती राजघाट, देवदेवेश्वर घाट पर श्रद्धालुओं ने मौन रहकर तड़के स्नान किया। वहीं, सूर्य भगवान को अर्घ देकर आशीर्वाद लिया। इसके बाद श्रद्धालुओं ने चक्रतीर्थ, मां ललिता देवी मंदिर, हनुमानगढ़ी, वेदव्यास, सूतगद्दी आदि देव स्थलों पर पहुंचकर माथा टेका और भगवान से परिवार एवं समाज कल्याण के लिए आशीर्वाद मांगा। इस मौके पर सबसे अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ चक्रतीर्थ और ललिता देवी मंदिर में देखने को मिली।

पूजन विधि-विधान 

इस पर्व पर शंकर जी के रुद्राभिषेक का विधान है। अमावस्या के दिन सूर्य चंद्रमा का मिलन होता है। अमावस्या पर सफेद वस्तुएं चीनी, चावल, दूध, दही आदि का दान करने से चंद्रमा अनुकूल होता है। अमावस्या पर 108 बार परिक्रमा करते हूए पीपल वृक्ष की पूजा करनी चाहिए।

आध्यात्मिक शक्तियों का विकास

मौन रहने से आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है। शरीर में ऊर्जा संग्रहित होती है। जीवन भर लोभ, मोह माया की दलदल में फंसा मानव कम से कम साल भर में मात्र एक दिन मौन व्रत धारण कर अपनी सूक्ष्म आंतरिक शक्तियों को पुन: संग्रहित कर सकता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद प्राप्त होता है।

पुराणों में बताई गई है महिमा

पुराणों में मौनी अमावस्या पर संगम स्नान की जो महिमा वर्णित है वह कालिदास के शब्दों में स्वर्ग तथा मोक्षदायिनी है। मौनी अमावस्या के दिन श्रद्धालुओं को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, मौन व्रत धारण कर त्रिवेणी स्नान करना चाहिए। इसके बाद अपने तीर्थ पुरोहित को गाय आदि का दान देना चाहिए। अगर हो सके तो मौन व्रत का पालन, व्रत कर्ता को पूरे दिन करना चाहिए।

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