संक्रांति का अर्थ है संक्रमण। इसलिए सूर्य के इस संक्रमण से बचने और मन की शुद्धि के लिए श्रद्धालु संगम तट पर तिल के तेल का दीपक जलाते हैं। मकर संक्रांति पर द्वादस माधव के तीर्थ प्रयाग में भगवान वेणी माधव को प्रमुख तीर्थ के रूप में माना जाता है। इसलिए वेणीमाधव भगवान को दीप दान विशेष रूप से करते हैं।

मकर संक्रांति पर स्नान और दान का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन दिया गया दान इस जन्म के साथ अगले जन्म में करोड़ो़ गुना होकर मिलता है। मान्यता है कि यहां जितने भी दान किए जाते हैं वे अक्षय फल देने वाले होते हैं। महाभारत के अनुसार ‘यह देवताओं की संस्कार की हुई भूमि है। यहां दिया हुआ थोड़ा सा भी दान महान होता है।’
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दान महात्म्य
मकर संक्रांति पर हवन, अभिषेक, यज्ञ, नदियों में स्नान दान का बहुत महतव है। इस अवसर पर खिचड़ी, तिल, गुड़, चावल, नीबू, मूली, उड़द दाल और द्रव्य का दान करना चाहिए। इस दिन सूर्य को आराध्य मानकर पितरों को भी तिल, दान करना पुण्यकारी होता है।
तीर्थ पुरोहितों के शिविरों में आध्यात्मिकता पर आधुनिकता का काफी असर है। लैपटाप से लैस पंड़ो की नई पीढ़ीे.. श्रद्धालुओं को ‘फिक्स एफडी’ से कम नहीं मानती हैं। गांव से आकर श्रद्धालु जितना प्रयाग में अपने पुरोहित को दान देते हैं उससे ज्यादा ‘मौसमी उधार’ के कॉलम में नगद, अनाज, सोना-चांदी को दान के रूप में दर्ज भी करा लेते हैं।
चैत में जब नई फसल तैयार हो जाती है, तब पुरोहित उधार की डायरी के साथ गांव पहुंच जाते हैं। वहां यजमान के यहां महीनों रहकर प्रयागराज का बकाया उधारी कॉलम में दर्ज रकम के अनुसार एकत्र कर लेते हैं। साथ ही अपने यजमान को अगले साल माघ मेले मेंं आने का न्यौता भी दे देते हैं।
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