भूपेश बघेल बने मुख्यमंत्री, रेस जीतने के लिए ये चुनौती से कम न थी…​ये 4 बड़े कारण…

पार्टी के सामने कई बड़े चहरे उभरकर सामने आए. इस रस्साकशी में भूपेश बघेल, टीएस सिंह देव, ताम्रध्वज साहू और चरणदास महंत जैसे चार बड़े नामों पर मंथन हुआ और अंतत: राहुल गांधी की मुहर भूपेश बघेल के नाम पर लगी. कई ऐसे कारण हैं, जिसके चलते बघेल ने इस बाजी में सबको पछाड़ दिया. तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली जीत में सबसे प्रचंड और अप्रत्याशित नतीजे छत्तीसगढ़ में रहे. शायद यही वजह है कि कांग्रेस आलाकमान को यहां का मुख्यमंत्री चुनने में इसलिए भी देरी हुई

1. संकट की घड़ी में मिली कांग्रेस की जिम्मेदारी

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का 15 साल का वनवास अब खत्म हो चुका है. राज्य में कांग्रेस की लहर के आगे सत्ताधारी बीजेपी धाराशाई हो गई. पार्टी की इस बड़ी जीत का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो हैं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल. अपने आक्रामक तेवर के लिए पहचाने जाने वाले बघेल ने जब राज्य में पार्टी की कमान संभाली तो कांग्रेस कई मोर्चों पर संकट से जूझ रही थी. राज्य में कांग्रेस के पहली पंक्ति के नेता झीरम घाटी नक्सली हमलों में मारे जा चुके थे, जिसमें विद्याचरण शुक्ला, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और महेंद्र कर्मा मुख्य तौर पर शामिल थे. ऐसे में पार्टी में न सिर्फ नेतृत्व का संकट था बल्कि लगातार तीन चुनाव हार चुकी पार्टी हताश थी.

2. जोगी को किया बाहर, खुद संभाली कमान

बघेल को जो जिम्मेदारी मिली वो किसी चुनौती से कम न थी. उन्होंने न सिर्फ पार्टी में नई जान फूंकी, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने का साहस किया. जब कांग्रेस के बड़े नेता मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ सॉफ्ट रुख अख्तियार किए हुए थे और यहां तक कि जोगी को बीजेपी की ‘बी टीम’ कहा जाने लगा था, तब बघेल ने विधानसभा के भीतर और बाहर बीजेपी सरकार पर सीधा हमला बोला. प्रदेश के कई मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरे, नसबंदी कांड, अंखफोड़वा कांड, भूमि अधिग्रहण को लेकर हुए विवाद पर उन्होंने पदयात्राएं कीं और रमन सरकार को घेरा. विधानसभा चुनाव से पहले बघेल की प्रदेश के कई हिस्सों में पदयात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरा.

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भूपेश बघेल ने खुद छत्तीसगढ़ के अन्नदाताओं की नब्ज पकड़कर उसे चुनावी मुद्दा बनाया और इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल करवा बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया.

3. मुकदमों से भी नहीं डिगे बघेल

जैसे-जैसे भूपेश बघेल का हमला रमन सरकार पर बढ़ता गया, वैसे ही बघेल और उनके परिवार पर कई तरह के मुकदमें भी लदें. हाल ही में रमन सिंह सरकार के मंत्री राजेश मूणत से जुड़ी एक कथित सेक्स सीडी के मामले में जब भूपेश बघेल को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया, तब उन्होंने जमानत लेने से इनकार कर दिया. लेकिन बाद में आलाकमान के कहने पर वे बेल पर रिहा हुए और चुनाव की कमान संभाली. बघेल के इस रुख ने उनकी छवि उस योद्धा के तौर बनाई जो किसी भी तरह के दबाव में झुकने वाला नहीं था.

4. कुर्मी जाति का खासा प्रभाव

एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले बघेल राज्य में राजनीतिक दृष्टिकोण से अहम कुर्मी जाति से आते हैं. कांग्रेस का प्रदर्शन भी छत्तीसगढ़ की ओबीसी बेल्ट में खासा अच्छा रहा. मौजूदा सांसद और कांग्रेस के ओबीसी सेल के अध्यक्ष ताम्रध्वज साहू ने भी साहू समुदाय को कांग्रेस की तरफ लाने में अहम भूमिका निभाई. हालांकि कुर्मी समुदाय को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और बघेल साल 1993 से ही मानव कुर्मी क्षत्रीय समाज के संरक्षक रहे हैं. राज्य में कुर्मी और साहू समुदाय कुल आबादी का 36 फीसदी है जो किसी भी दल को जीत दिलाने के लिए काफी हैं.

जातीय गणित के अलावा भूपेश बघेल की जो सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि वो यह है कि जब ऐसा माना जा रहा था कि जोगी फैक्टर के चलते बीजेपी एक बार फिर सरकार बना लेगी, तब बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस ने जबरदस्त जीत हासिल कर सियासी पंडितों को हैरान कर दिया.

कैसा रहा सियासी सफर?

80 के दशक में जब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, भूपेश ने राजनीति की पारी यूथ कांग्रेस के साथ शुरू की थी. दुर्ग जिले के रहने वाले भूपेश दुर्ग के यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

1994-95 में भूपेश बघेल को मध्यप्रदेश यूथ कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया. 1993 में जब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो भूपेश कांग्रेस से दुर्ग की पाटन सीट से उम्मीदवार बने और जीत दर्ज की. उन्होंने बीएसपी के केजूराम वर्मा को करीब 3000 वोट से मात दी थी. इसके बाद अगला चुनाव भी वो पाटन से ही जीते. इस बार उन्होंने बीजेपी की निरुपमा चंद्राकर को 3700 वोटों से मात दी थी. जब मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार बनी, तो भूपेश कैबिनेट मंत्री बने.

2000 में जब छत्तीसगढ़ अलग राज्य बन गया और पाटन छत्तीसगढ़ का हिस्सा बना, तो भूपेश छ्त्तीसगढ़ विधानसभा पहुंचे. वहां भी वो कैबिनेट मंत्री बने. 2003 में कांग्रेस जब सत्ता से बाहर हो गई, तो भूपेश को विपक्ष का उपनेता बनाया गया.

2004 में जब लोकसभा के चुनाव होने थे, तो भूपेश को दुर्ग से उम्मीदवार बनाया गया. लेकिन बीजेपी के ताराचंद साहू ने उन्हें करीब 65 हजार वोटों से मात दे दी. 2009 में कांग्रेस ने उनकी सीट बदली और राजधानी रायपुर से चुनाव लड़वाया. इस बार उनके सामने रमेश बैश थे. रमेश बैश ने उन्हें मात दे दी. अक्टूबर 2014 में उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और तब से वो इस पद पर हैं.

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