भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग आज भी देश-विदेश में प्रचलित: धर्म

गौतम बुद्ध ने चार सूत्र दिए उन्हें ‘चार आर्य सत्य’ के नाम से जाना जाता है। पहला दुःख है, दूसरा दुःख का कारण, तीसरा दुःख का निदान और चौथा मार्ग वह है, जिससे दुःख का निवारण होता है।

भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग वह माध्यम है, जो दुःख के निदान का मार्ग बताता है। उनका यह अष्टांगिक मार्ग ज्ञान, संकल्प, वचन, कर्म, आजीव, व्यायाम, स्मृति और समाधि के सन्दर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है।

गौतम बुद्ध रोज अपने शिष्यों और भक्तों को उपदेश दिया करते थे। वे अपने उपदेशों में जीवन में सुख-शांति बनाए रखने के सूत्र बताते थे, लेकिन इन उपदेशों का लाभ कुछ ही लोगों को मिल पाता था।
एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा कि तथागत क्या आपके सत्संग सुनने वाले सभी लोगों का कल्याण होता है? बुद्ध ने कहा कि कुछ का होता है और कुछ का नहीं होता है। शिष्य ने पूछा लेकिन ऐसा क्यों?

बुद्ध ने इस सवाल के जवाब में एक सवाल पूछा कि अगर कोई व्यक्ति तुमसे कहीं का रास्ता पूछे और तुम्हारे रास्ता बताने के बाद भी वह भटक जाए तो? शिष्य ने कहा कि मेरा काम सिर्फ उसे रास्ता बताने का था, अगर वह फिर भी भटक जाता है तो मैं क्या कर सकता हूं।

बुद्ध ने कहा कि इसी तरह मेरा काम लोगों का मार्गदर्शन करने का है। मैं सिर्फ सही-गलत का भेद बता सकता हूं। मैं जो सूत्र बताता हूं, उन्हें अपनाना है या नहीं है, ये निर्णय लोगों को ही करना होता है।

जो लोग ये सूत्र अपनाते हैं, उनका कल्याण हो जाता है। जो लोग इन बातों को नहीं अपनाते हैं, वे हमेशा दुखी रहते हैं और भटकते रहते हैं।

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