निजीकरण के खिलाफ : देशभर के बैंकों में 15 व 16 मार्च को हड़ताल, युवाओं समर्थन किया

सरकारी नौकरियों में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और युवाओं की समस्याओं को लेकर आवाज बुलंद करने वाले संगठन ‘युवा हल्लाबोल’ ने पहली बार बैंक कर्मियों की दो दिवसीय हड़ताल का समर्थन किया है। युवा हल्लाबोल के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम के मुताबिक, देशभर के बैंकों में 15 व 16 मार्च को होने वाली हड़ताल में युवा वर्ग भी शामिल होगा।

इसके अलावा नौ मार्च को ट्विटर पर ‘हम देश नहीं बिकने देंगे’ हैशटैग के जरिए निजीकरण के खिलाफ मुहिम शुरू की जाएगी। केंद्र सरकार धड़ाधड़ राष्ट्रीय संपत्तियों को बेच रही है। इससे युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में कटौती हो रही है। सरकारी एवं प्राइवेट क्षेत्रों की नौकरियों में लगातार आई गिरावट के चलते युवाओं का करियर चौपट हो रहा है।

रोजगार के मुद्दे को राष्ट्रीय बहस में लाने वाले ‘युवा हल्ला बोल’ के संयोजक अनुपम ने मुनाफा कमा रहे सरकारी बैंकों को राजनीतिक स्वार्थ के लिए निजी हाथों में सौंपने की योजना का पुरजोर विरोध किया है। दशकों के खून पसीने और मेहनत से अर्जित राष्ट्रीय संपत्ति, सार्वजनिक उपक्रम और बैंकों को बेचकर कुछ बड़े पूंजीपतियों के हवाले करने की नीति के खिलाफ ‘युवा हल्ला बोल’ ने मुहिम छेड़ दी है।

अनुपम ने कहा कि बैंक यूनियनों के संयुक्त मंच द्वारा चलाये जा रहे प्रतिरोध कार्यक्रम का युवा वर्ग समर्थन करता है। यूनियनों ने तय किया है कि मंगलवार नौ मार्च को बैंक निजीकरण के खिलाफ ट्विटर अभियान चलाया जाएगा। इसके बाद 15 एवं 16 मार्च को देशभर के बैंकों में दो दिवसीय हड़ताल होगी।

अनुपम का कहना है कि देश का युवा उन बैंकरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है जो पिछले कई दशकों से भारत के विकास और समृद्धि की रीढ़ रहे हैं। मोदी सरकार द्वारा चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से भारत के आर्थिक स्वालंबन पर किए जा रहे प्रहार से सिर्फ बैंककर्मी ही नहीं, बल्कि देश का हर नागरिक प्रभावित होगा। इतिहास गवाह है कि बड़े धन्नासेठों ने जब भी कर्ज लेकर पैसा वापस नहीं किया और बैंक के डूबने की नौबत आई तो इन्हीं सरकारी बैंकों ने आम जनता की मेहनत की कमाई को बचाया है। सबसे ताजा उदाहरण यस बैंक का है जिसके खाताधारकों को एसबीआई के जरिये बचाया गया।

केंद्र सरकार की नीति और नीयत से स्पष्ट हो चुका है कि हमारी राष्ट्रीय संपत्ति और देश को आत्मनिर्भर बनाने वाले हर संस्थान को अपने पूंजीपति मित्रों के हाथ सौंपने की तैयारी है। अब समय आ गया है कि सब एकजुट होकर बोलें, हम देश नहीं बिकने देंगे। दुर्भाग्य की बात ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ‘मैं देश नहीं बिकने दूँगा’ नारे के साथ सत्ता में आए ही थे। अनुपम बताते हैं, बैंकों के विलय से जब एनपीए कम नहीं होगा तो उनका निजीकरण क्यों किया जा रहा है। अभी तक बैंक कर्मी केवल अपनी नौकरी सुरक्षित करने के लिए निजीकरण का विरोध करते रहे हैं, लेकिन अब देश का युवा उनकी इस मुहिम में शामिल होकर इसे एक आंदोलन का रूप देगा।

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