धर्मराज की यह कहानी, कभी भी नहीं सुनी होगी आपने…

कम लोग हैं जो शास्त्रों की कहानियां जानते हैं. आज आपको धर्मराज की वह कहानी बताने जा रहे हैं जिसे कम लोग जानते हैं. 

धर्मराज की कहानी- एक ब्राह्मणी मरकर भगवान के घर गई. वहाँ जाकर बोली , “ मुझे धर्मराज जी के मन्दिर का रास्ता बता दो.” स्वर्ग से एक दूत आया और बोला , ब्राह्मणी आपको क्या चाहिए. वो बोली मुझे धर्मराज मन्दिर का रास्ता बता दो. आगे – आगे दूत और पीछे ब्राह्मणी मन्दिर तक गये , ब्राह्मणी बहुत धार्मिक महिला थी उसने बहुत दान – पुण्य कर रखा था उसे विश्वास था की उसके लिए धर्मराजजी के मन्दिर का रास्ता अवश्य खुल जायेगा. ब्राह्मणी ने वहाँ जाकर देखा वहाँ बड़ा सा मन्दिर , सोने का सिंहासन , हीरे मोती से जडित छतरी थी. धर्मराजजी न्याय सभा में बठे साक्षात् इन्द्र के समान सौभा पा रहे थे और न्याय नीति से अपना राज्य सम्भाल रहे थे.यमराजजी सबको कर्मानुसार दंड दे रहे थे. ब्राह्मणी ने जाकर प्रणाम किया और बोली मुझे वैकुण्ठ जाना हैं. धर्मराज जी ने चित्रगुप्त से कहाँ लेखा – जोखा सुनाओ.

चित्रगुप्त ने लेखा सुनाया , सुनकर धर्मराज जी ने कहाँ तुमने सब धर्म किये पर धर्मराज जी की कहानी नहीं सुनी , वैकुण्ठ में कैसे जायेगी.” बुढिया बोली – ‘ धर्मराज जी की कहानी के क्या नियम हैं ‘ धर्म राज जी बोले – “ कोई एक साल , कोई छ: महीने , कोई सात दिन ही सुने पर धर्म राज जी की कहानी अवश्य सुने.” फिर उसका उद्यापन कर दे. उद्यापन में काठी , छतरी , चप्पल , बाल्टी रस्सी , टोकरी , टोर्च ,साड़ी ब्लाउज का बेस , लोटे में शक्कर भरकर , पांच बर्तन , छ: मोती , छ: मूंगा , यमराज जी की लोहे की मूर्ति , धर्मराज जी की सोने की मूर्ति , चांदी का चाँद , सोने का सूरज , चांदी का साठिया ब्राह्मण को दान करे. प्रतिदिन चावल का साठिया बनाकर कहानी सुने.यह बात सुनकर ब्राह्मणी बोली भगवान मुझे सात दिन वापस पृथ्वी लोक पर जाने दो में कहानी सुनकर वापस आ जाउंगी.

धर्मराज जी ने उसका लेखा – जोखा देखकर सात दिन के लिए पृथ्वी पर भेज दिया. ब्राह्मणी जीवित ही गई. ब्राह्मणी ने अपने परिवार वालों से कहा की में सात दिन के लिए धर्मराज जी की कहानी सुनने के लिए वापस आई हूँ इस कथा को सुनने से बड़ा पुण्य मिलता हैं , उसने चावल का साठिया बनाकर परिवार के साथ सात दिन तक धर्मराज जी की कथा सुनी. सात दिन पुरे होने पर वापस धर्मराज जी का बुलावा आया और ब्राह्मणी को वैकुण्ठ में श्री हरी के चरणों में स्थान मिला.

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