तुलसी विवाह से मिलता है कन्यादान के बराबर फल, जानिए क्या है शुभ मुहूर्त और विवाह विधि

 दिवाली के बाद कार्तिक महीन की शुक्ल पक्ष में देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इसी दिन तुलसी तथा शालिग्राम जी का विवाह करवाया जाता है। इस साल देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह 19 नवंबर यानी आज  के दिन है। आपको बता दें कि शालीग्राम विष्णु जी के प्रतिरूप हैं। वहीं, तुलसी विष्णु प्रिया हैं। 

देवउठनी के दिन मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा से जागते हैं। इसके अलावा इस दिन तुलसी और शालीग्राम विवाग का आध्यात्मिक अर्थ है। मान्यताओं के अनुसार तुलसी जी की पूजा के बिना शालिग्राम जी की पूजा नहीं की जा सकती है।

यह अनुष्ठान कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी से ही प्रारम्भ हो जाता है तथा तुलसी विवाह तक अखण्ड दीप जलता रहता है।  इस विवाह को करवाने से कई जन्मों के पापों को नष्ट करता है। इस दिन व्रत रखने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इससे दांपत्य जीवन में प्रेम और अटूटता आती है।
 

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कन्यादान के बराबर मिलता है फल 
ज्योतिषाचार्य सुजीत जी महाराज के अनुसार तुलसी विवाह करवाने वाले को कन्यादान के बराबर फल की प्राप्ति होती है।वहीं, जिनका दाम्पत्य जीवन बहुत अच्छा नहीं है वह लोग सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तुलसी विवाह करवा सकते हैं।

युवा जो प्रेम में हैं लेकिन विवाह नहीं हो पा रहा है उन युवाओं को भी तुलसी विवाह करवाना चाहिए। तुलसी विवाह करवाने से कई जन्मों के पाप नष्ट होते हैं। तुलसी पूजा करवाने से घर में संपन्नता आती है तथा संतान योग्य होती है।

तुलसी विवाह की विधि-
तुलसी जी को लाल चुनरी पहनाकर पूरे गमले को लाल मंडप से सजाया जाता है। शालिग्राम जी की काली मूर्ति ही होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो विष्णु जी की मूर्ति ले सकते हैं।

गणेश पूजन के बाद गाजे बाजे के साथ शालिग्राम जी की बारात उठती है। अब लोग नाचते गाते हुए तुलसी जी के सन्निकट जाते हैं। अब भगवान विष्णु जी का आवाहन करते हैं। भगवान विष्णु जी या शालिग्राम जी की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा कराते हैं। 

तुलसी जी के कराए जाते हैं सात फेरे 
तुलसी विवाह के दिन विष्णु जी को पीला वस्त्र धारण करवाकर दही, घी, शक्कर इनको अर्पित करते हैं। दूध व हल्दी का लेप लगाकर शालिग्राम व तुलसी जी को चढ़ाते हैं। मंडप पूजन होता है। विवाह के सभी रस्म निभाने के बाद शालिग्राम और तुलसी जी के सात फेरे भी कराए जाते हैं। 

कन्यादान करने वाले संकल्प लेकर इस महान पुण्य को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार यह विवाह करवाने वाले को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।

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