तीनों सरकारी बीमा कंपनियों का विलय प्रक्रिया पर फैसला जल्दी…

बजट में प्रस्तावित बीमा कंपनियों के विलय पर सरकार एक कदम और आगे बढ़ गई है। सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने विलय के प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेज दिया है। जल्द ही इसे मंजूरी के लिए कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा। कैबिनेट से मंजूरी मिलते ही तीनों सरकारी बीमा कंपनियों का विलय प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

सरकार इन कंपनियों के विलय के बाद पैदा होने वाली कारोबारी और नियामकीय जरूरतों को पूरा करने के लिए करीब 12 हजार करोड़ रुपये की रकम देने पर भी सहमत हो गई है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद तीनों सरकारी जनरल इंश्योरेंस कंपनियां- ओरिएंटल इंडिया इंश्योरेंस, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस मिलकर एक कंपनी हो जाएंगी। वियल के बाद बनी नई कंपनी जनरल इंश्योरेंस के मामले में देश की सबसे बड़ी कंपनी हो जाएगी। 

सरकार की तरफ से रकम देने के पीछे बड़ी वजह ये है कि विलय के बाद बड़ी कंपनी के हिसाब से ही उसका कुल संपत्ति होना चाहिए जो नियामकीय शर्तों को पूरा करने के लिए जरूरी है। मौजूदा नियमों के मुताबिक में कंपनियों की देनदारी के मुकाबले 1.5 फीसदी रकम अतिरिक्त रखनी होती है। फिलहाल इन कंपनियों में औसतन ये अनुपात 1.5 फीसदी की जगह महज 1 फीसदी ही है। इस अनुपात को पूरा करने के लिए अतिरिक्त रकम की जरूरत की जरूरत पड़ेगी। 

सरकार ने सलाहकार नियुक्त किया

रकम का आंकलन करने के लिए सरकार ने ईएंडवाई नाम के सलाहकार को नियुक्त किया था। सरकार कंपनियों के विलय पर आने वाले 12 हजार करोड़ रुपये खर्च करने के लिए इसलिए तैयार हो गई है क्योंकि उसे लगता है वैश्विक माहौल के हिसाब से नई बनी बड़ी कंपनी का आकार और कारोबार विलय के बाद काफी सुधर जाएगा।

वहीं सरकार के विनिवेश विभाग की तरफ से भी ऐसा आंकलन किया गया था कि विलय होने और बड़ी आकार की बीमा कंपनी बनने से उसमें हिस्सा बेचने में भी मुनाफा रहेगा। सरकार ने पहले भी अलग अलग तरह से इन कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की थी लेकिन उसमें खास मुनाफा नहीं हो सका।

कंपनियों की वित्तीय हालत सुधरेगी 

मामले से जुड़े अधिकारी के मुताबिक अब उम्मीद जताई जा रही है कि तेजी से विलय की प्रक्रिया पूरी कर सरकार न सिर्फ इंन कंपनियों की हालत सुधार सकती है बल्कि हिस्सा बेचकर वो सरकारी खजाने पर पड़ रहे बोझ को भी हल्का करने में कामयाब हो पाएगी। सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान सरकारी कंपनियों और निवेश में हिस्सेदारी बेचकर 1.05 करोड़ रुपये का विनिवेश का लक्ष्य रखा है। 

बिजनेस बीमा वैल्यू एड घटते मुनाफे की चुनौती

साधारण बीमा (जनरल इंश्योरेंस) क्षेत्र में काम करने वाली ज्यादातर कंपनियों का मुनाफा दबाव में चल रहा है। बढ़ते दावों और जोखिम गारंटी में नुकसान के चलते इन कंपनियों की वित्तीय स्थिति बेहद खराब है। सार्वजनिक क्षेत्र की तीन कंपनियों में से दो कंपनियां अपनी ऋण शोधन क्षमता अनुपात (इनसॉल्वेंसी रेश्यो) के मानकों को  बनाए रखने की कोशिश में लगी हैं।

बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) के ऋण शोधन क्षमता अनुपात नियम के मुताबिक यह 1.5 होना चाहिए। नेशनल इंश्योरेंस का ऋण शोधन क्षमता अनुपात 1.5 है लेकिन यूनाइटेड इंडिया का 1.21 है।

क्या है मौजूदा स्थिति

31 मार्च, 2017 तक तीन कंपनियों के कुल 200 बीमा उत्पाद थे, जिनके माध्यम से उनको कुल 41,461 करोड़ रुपये प्रीमियम आय होती है और उनकी बाजार हिस्सेदारी लगभग 35 फीसदी है। कुल 44 हजार कर्मचारियों और छह हजार ऑफिस के साथ उनकी कुल नेटवर्थ 9,243 करोड़ रुपये है।

देश की सबसे बड़ी गैर जीवन बीमा कंपनी बनेगी

वर्ष 2017 में न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी और जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया को शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराया गया था। शुरुआती अनुमानों के मुताबिक, तीनों बीमा कंपनियों के विलय के बाद बनने वाली कंपनी 1.2 से 1.5 लाख करोड़ रुपये के बाजार मूल्यांकन के साथ भारत की सबसे बड़ी गैर जीवन बीमा कंपनी होगी।

बजट 2018-19 में रखा गया था विलय का प्रस्ताव

गौरतलब है कि सरकार ने बजट 2018-19 में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के विलय का प्रस्ताव रखा था। उसके बाद तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में घोषणा की थी कि तीनों कंपनियों का एक बीमा कंपनी में विलय किया जाएगा। इन कंपनियों की खराब वित्तीय सेहत सहित कई वजहों से यह विलय पूरा नहीं हो सका था।

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