जाने क्या है यूथेनेसिया, जिसका सत्ता चाहते हैं न्यूजीलैंड के लोग, 5 वर्ष से हों रहा था युद्ध

इन दिनों न्यूजीलैंड में यूथेनेसिया को लेकर काफी जोर शोर से चर्चा चल रही है। कुछ दिन पहले लोगों ने इसके लिए वोट भी किया। लोगों से मिले वोट और उनकी सहमति के आधार पर अब सरकार इसके लिए कानून भी बनाने की तैयारी कर रही है। जनमत संग्रह में लोगों ने अपने विचार खुलकर रखे हैं। हम आपको बता रहे हैं कि क्या है यूथेनेसिया जिसको लेकर न्यूजीलैंड में बीते 5 सालों से जारी थी बहस। अब आम चुनाव के दौरान इसके लिए जनमत संग्रह भी कराया गया। जिसमें ये बात निकलकर सामने आई है कि फिलहाल 65 फीसद लोग इसके पक्ष में है। 

क्या है यूथेनेसिया?

दरअसल न्यूजीलैंड में इच्छामृत्यु को यूथेनेसिया के नाम से जाना जाता है। न्यूजीलैंड के लोगों ने यूथेनेसिया यानी इच्छामृत्यु को वैध बनाने के लिए भारी समर्थन दिया है। इस मुद्दे पर 17 अक्टूबर को हुए मतदान के शुरुआती नतीजे बता रहे हैं कि 65 फीसदी से ज्यादा लोग इच्छामृत्यु का अधिकार चाहते हैं। इच्छामृत्यु पर जनमतसंग्रह देश के आमचुनाव के साथ ही करा लिया गया। इन चुनावों में प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न को भारी जीत मिली। शुक्रवार को वोटों की गिनती से पता चला कि 65.2 फीसदी लोग यूथेनेसिया के पक्ष में हैं, जबकि 33.8 फीसदी लोग इसका विरोध कर रहे हैं। इन नतीजों से साफ है कि न्यूजीलैंड जल्द ही उन मुट्ठी भर देशों में शामिल हो जाएगा जो डॉक्टर की मदद से इच्छामृत्यु की अनुमति देते हैं। 

पांच साल से यूथेनेसिया के लिए चल रही थी बहस

न्यूजीलैंड के कानून में इस सुधार के लिए अभियान चला रहे डेविड सेमूर ने इसे “जबर्दस्त जीत” बताया और कहा कि यह न्यूजीलैंड को मानवता के लिए ज्यादा दयालु बनाएगा। न्यूजीलैंड में इच्छामृत्यु पर बहस लेक्रेटिया सील्स ने शुरू की। साल 2015 में इस महिला की ब्रेन ट्यूमर के कारण मौत हो गई। मौत उसी दिन हुई जब कोर्ट ने अपनी इच्छा के समय पर मृत्यु की लंबे समय से चली आ रही उसकी मांग को ठुकरा दिया। सील्स के पति मैट विकर्स ने कहा कि आज मुझे बहुत राहत और कृतज्ञता का अनुभव हो रहा है।

हालांकि न्यूजीलैंड में चर्चों के संगठन साल्वेशन आर्मी का कहना है कि कानून में सुरक्षा के पर्याप्त उपाय नहीं हैं और इसके नतीजे में लोगों को अपनी जीवनलीला खत्म करवाने के लिए बाध्य किया जा सकता है। साल्वेशन आर्मी ने कहा है कि कमजोर लोग जैसे कि बुजुर्ग और ऐसे लोग जो मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं, वो इस कानून के कारण खासतौर से जोखिम में रहेंगे। 

कई देशों में है इच्छामृत्यु की इजाजत

इच्छामृत्यु को सबसे पहले नीदरलैंड्स ने साल 2002 में वैध करार दिया गया था। इसके तुरंत बाद उसी साल बेल्जियम में भी इसे कानूनी घोषित कर दिया। 2008 में लग्जमबर्ग, 2015 में कोलंबिया और 2016 में कनाडा ने भी इसे कानूनी रूप दे दिया। यह अमेरिका के भी कई राज्यों में वैध है और साथ ही ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में भी इसे वैध करार दिया गया है। इसके अलावा कुछ देशों में मदद से आत्महत्या की भी अनुमति है जिसमें मरीज खुद ही किसी घातक दवा का सेवन करता है, बजाय किसी मेडिकल कर्मचारी या फिर किसी तीसरे पक्ष के।

यूथेनेसिया को लेकर पुर्तगाल की संसद में भी बहस चल रही है हालांकि इस हफ्ते जनमत संग्रह कराने की मांग पिछले हफ्ते संसद ने ठुकरा दी गई थी। इसी महीने नीदरलैंड्स में 12 साल से कम उम्र के बच्चों को भी इच्छामृत्यु का अधिकार दे दिया गया। अब तक वहां नाबालिकों के मामले में 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों या फिर माता पिता की सहमति से नवजात शिशु को यूथेनेसिया का अधिकार था। न्यूजीलैंड में पिछले साल मदद से मौत की अनुमति संसद से मिल गई थी लेकिन सांसदों ने इसे लागू करने में जान बूझ कर देरी की ताकि लोगों की राय इस मामले में ली जा सके। 

साल 2021 से हो जाएगा लागू

यह कानून 2021 से लागू हो जाएगा। इसके तहत मानसिक रूप से स्वस्थ एक व्यस्क अगर ऐसी किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है जिसमें छह महीने के भीतर उसकी मौत होने की आशंका है और वह अगर असहनीय पीड़ा झेल रहा है, तो उसे जहरीली दवा दी जा सकती है। इसके लिए अनुरोध पत्र पर मरीज के डॉक्टर, एक अलग स्वतंत्र डॉक्टर के दस्तखत होने चाहिए और अगर किसी भी तरह से मानसिक समस्या का संदेह हो, तो एक मानसिक चिकित्सक की भी सलाह लेना जरूरी होगा। न्यूजीलैंड के मौजूदा कानून के मुताबिक अगर कोई किसी को मरने में मदद देता है, तो उस पर आत्महत्या में मदद या विवश करने का आरोप लगेगा। इसके लिए उसे अधिकतम 14 साल की जेल या फिर हत्या का आरोप लग सकता है, जिसमें उम्रकैद की सजा होगी।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com