जानेंं, जलवायु परिवर्तन ने ​कैसे किया सिंधु घाटी सभ्यता का विनाश…

वैज्ञानिकों के अनुसार आज से चार हजार साल पहले जलवायु परिवर्तन के चलते सिंधु घाटी सभ्यता में बसे आधुनिक शहरों को छोड़कर लोगों को दूर जाना पड़ा। ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसमी बारिश होना बंद हो गई। लिहाजा सिंधुवासियों को हिमालय की कम ऊंची चोटियों पर शरण लेने पर विवश होना पड़ा। वहां ये गांव बनाकर रहने लगे।

धीरे-धीरे वहां भी पानी की आपूर्ति खत्म होने पर इनकी सभ्यता का अंत हो गया। दुनिया की तीन सबसे प्राचीन (समयकाल के हिसाब से) और आधुनिक (रहन-सहन के लिहाज से) सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी सभ्यता के खत्म होने की अटकलों पर वैज्ञानिकों ने विराम लगा दिया है। चार हजार साल पहले खत्म हुई इस सभ्यता की वजहों को जानने के लिए दशकों तक किए गए अध्ययन में सामने आया कि जलवायु परिवर्तन ने इसका नाश किया। मैसाचुसेट्स के वूड्स होल ओसियानोग्राफिक इंस्टीट्यूशन के शोधकर्ता उस ऐतिहासिक घटना को आज के मौजूदा दौर से भी जोड़कर देख रहे हैं कि कैसे जलवायु परिवर्तन के चलते शहरों से लोग दूसरी जगहों पर पलायन को अभिशप्त हैं।

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पाकिस्तान से सटे अरब सागर के तट पर कई स्थानों से तलछटों के नमूने लिए। उसमें मौजूद डीएनए के अवशेषों का परीक्षण यह जानने के लिए किया कि गर्मियों और सर्दियों के दौरान इस क्षेत्र में किस चीज की प्रचुरता होती थी। शोधकर्ताओं के अनुसार सिंधु नदी जहां समुद्र में मिलती है वहां बहुत कम ऑक्सीजन है लिहाजा वहां जो भी उगता और खत्म होता है, सब अच्छी तरह तलछटों में संरक्षित है। नतीजे बताते हैं कि जाड़ों के दौरान वहां मानसून उग्र होता था जबकि गर्मियों के दौरान सूख चुका था।

तेज हवाएं गहरे समुद्र से पोषक तत्वों को सतह पर ले आती थीं जो पौधों और जीवों के लिए अहम होते थे लेकिन मंद हवाएं ऐसा नहीं कर पाती थी जिससे समुद्र के किनारे की उत्पादकता पर प्रतिकूल असर पड़ता गया। 1800 ईसा पूर्व तक सिंधु घाटी में खेती करना नामुमकिन हो गया। लिहाजा उन्हें हिमालय की शरण लेनी पड़ी। हिमालय की कम ऊंची शृंखलाओं पर शुरुआत में तो बारिश होती लेकिन अगले एक हजार सालों में बारिश की बूंदों का अकाल पड़ गया। जिससे एक फलती-फूलती सभ्यता का अंत हुआ।

हड़प्पा सभ्यता के नाम से जानी जाने वाली सिंधु घाटी की सभ्यता आधुनिक कांस्य युग के दौरान पनपी। दक्षिण एशिया के उत्तर पश्चिम में 5300 साल से 3300 साल पहले तक इस सभ्यता का अस्तित्व रहा। प्राचीन मिस्न और मेसोपोटामिया के साथ 2600 से 1900 ईसा पूर्व यह सभ्यता अपने चरम पर रही। आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान और भारत में इसका विस्तार था। अपने चरम पर इस सभ्यता की आबादी 50 लाख से अधिक थी जो उस समय दुनिया की आबादी में 10 फीसद हिस्सेदारी थी।

दुनिया ने पहला आधुनिक शौचालय यहीं देखा। आधुनिक नगर नियोजन की प्रणाली इसी सभ्यता में मिली। हड़प्पा और मोहनजो- दारो शहरों की बसावट बहुत नियोजित थी। कुओं से सभी घरों को पानी की आपूर्ति की जाती थी। गंदे पानी को ढंके हुए नालों में बहा दिया जाता था। यह दुनिया की पहली साफ-सफाई और स्वच्छता से जुड़ी प्रणाली मानी जाती है। शहरों में नगर निकाय भवन, बाजार, अनाज गृह, भंडार गृह बने थे। शहरों को बाढ़ और हमले से रोकने के लिए ऊंची और सुरक्षित दीवारें बनाई गई थीं।

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