जानिए आख़िर क्यों एक दशक में ही क्यों फीका पड़ गया डीजल कारों का रंग

करीब एक दशक पहले भारत में डीजल कारों के आगमन का जबरदस्त स्वागत किया गया था. भारत के सभी कार उत्पादकों का मंत्र बन गया था- डीजल अपनाओ, बिक्री बढ़ाओ. लेकिन एक दशक बाद ही डीजल कारों का रंग फीका पड़ गया है.

करीब एक दशक पहले भारत में डीजल कारों के आगमन का जबरदस्त स्वागत किया गया था. ताकत और किफायत जैसी विशेषताओं की वजह से यूरोप से चल कर भारत पहुंचने वाले अत्याधुनिक और उन्नत डीजल इंजनों ने भारतीय कार बाजार की पूरी दुनिया ही बदल दी थी. डीजल ईंधन किफायती होने और इससे डीजल कारों की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से भारत के अमूमन सभी कार उत्पादकों का नया मंत्र बन गया- डीजल अपनाओ, बिक्री बढ़ाओ. सभी कंपनियों में कारों के विभिन्न मॉडलों के डीजल वैरिएंट लॉन्च करने की होड़ मच गई, लेकिन एक दशक बाद ही डीजल कारों का रंग फीका पड़ गया है.

कई समस्याओं की वजह से अब कंपनियां डीजल कारों या एसयूवी जैसे अन्य डीजल वाहनों से दूर जा रही हैं. मारुति ने घोषित कर दिया है कि वह 1 अप्रैल 2020 से डीजल कारों का उत्पादन नहीं करेगी. डीजल कार मॉडल ज्यादा रखने वाली महिंद्रा ऐंड महिंद्रा भी अब समूचे रेंज में पेट्रोल इंजन लाने पर विचार कर रही है. टाटा मोटर्स भी डीजल मॉडल घटाने पर विचार कर रही है. इसलिए सवाल उठता है कि आखिर डीजल कारों के साथ समस्या क्या है? जानते हैं विस्तार से…

डीजल और पेट्रोल की कीमत में अंतर का घटना

भारत में डीजल कारों के मॉडल करीब एक दशक पहले आने शुरू हुए और आते ही छा गए थे. ताकत और किफायत जैसी विशेषताओं की वजह से यूरोप से भारत आने वाले अत्याधुनिक और उन्नत डीजल इंजनों ने भारतीय कार बाजार की पूरी दुनिया ही बदल दी थी. तब इन विशेषताओं की वजह से ही यूरोप में डीजल इंजन वाले कारों का बाजार के पचास फीसदी से ज्यादा हिस्स्से पर कब्जा हो चुका था. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार साल 2012-13 तक भारत में भी पैसेंजर व्हीकल के 48 फीसदी हिस्से पर डीजल व्हीकल का कब्जा हो चुका था. पेट्रोल और डीजल की कीमत में तब प्रति लीटर 25 रुपये तक का अंतर होने की वजह से डीजल कारों की बिक्री बढ़ती जा रही थी.

लेकिन साल 2014 में ईंधन की कीमतों पर सरकारी नियंत्रण खत्म होते ही तस्वीर बदलने लगी. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में अंतर निरंतर घटने लगा. अब तो डीजल और पेट्रोल की कीमत में करीब 7 रुपये प्रति लीटर का ही अंतर रह गया है. इसकी वजह से डीजल कारों की बिक्री भी घटने लगी. साल 2018-19 में कुल पैसेंजर  व्हीकल में डीजल व्हीकल का हिस्सा घटकर 22 फीसदी तक आ गया.

प्रदूषण पर जागरूकता और उत्सर्जन मानक में बदलाव

मारुति द्वारा डीजल कारों का उत्पादन बंद करने की एक बड़ी वजह है देश का नया उत्सर्जन मानक भारत स्टेज-6 (BS-VI) जो एक अप्रैल 2020 से लागू होना है. डीजल इंजनों को इस मानक के अनुरूप बनाने के लिए कंपनियों को भारी खर्च करना होगा और उनके लिए मुनाफा कमाना आसान नहीं होगा. इसलिए डीजल से बाहर ही निकल जाना उनके लिए मुफीद लग रहा है. भारत उत्सर्जन के मामले में जो मानक BS-VI लागू करने जा रहा है, उस स्तर का मानक यूरोप में पांच साल पहले ही लागू हो चुका है.

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने प्रतिबद्धता जताई है कि नए मानक को 1 अप्रैल 2020 से ही लागू किया जाएगा. देश भर में डीजल वाहनों से लेकर होने वाले प्रदूषण पर जागरूरता बढ़ रही है और प्रशासन सख्त निर्णय ले रहा है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली में 10 साल से पुराने डीजल ट्रकों की एंट्री पर रोक लग गई है और 10 साल से पुराने डीजल वाहन नहीं बेचे जा सकते.

समय बहुत कम

देश में बीएस-4 मानक को साल 2017 में लागू किया गया था और सरकार ने निर्णय लिया कि बीएस-5 नहीं बल्कि अब सीधे बीएस-6 मानक को लागू किया जाएगा और वह भी अप्रैल 2020 से. इसका मतलब है कि नए मानक के लिए सिर्फ तीन साल मिला है, जबकि बीएस-4 मानक को भी पूरे देश में लागू करने में सात साल लग गए थे. यानी नए मानक को लागू करने के लिए समय बेहद कम मिला है और तेल कंपनियों तथा ऑटो कंपनियों, दोनों के लिए इसे समय से लागू कर पाना काफी मुश्किल है.

दुनिया भर में बदल रहा पैटर्न

जिस यूरोप में कभी डीजल गाड़ियों का बोलबाला था, जो कभी डीजल कारों का दुनिया का सबसे बड़ा बाजार था, वहां भी अब इनकी लोकप्रियता घटती जा रही है. यूरोपीय यूनियन में डीजल कारों की बाजार हिस्सेदारी साल 2017 की पहली छमाही के 42.5 फीसदी के मुकाबले साल 2018 की पहली छमाही में घटकर महज 42.5 फीसदी रह गई.

फॉक्सवैगन और बीएमडब्ल्यू जैसी दुनिया की दिग्गज कार कंपनियों के देश जर्मनी में भी डीजल कारों की हिस्सेदारी साल 2018 की पहली छमाही में महज 31.1 फीसदी रह गई, जो एक साल पहले की समान अवधि में 41.3 फीसदी था. बर्लिन, लंदन, पेरिस जैसे प्रमुख यूरोपीय शहरों में डीजल कारों में बैन के कार्यक्रम शुरू हो गए हैं.

साल 2015 में एक बड़ा स्कैंडल सामने आया था, जिसमें फॉक्सवैगन ने यह स्वीकार किया था कि उसने उत्सर्जन मानक के पालन के दावे में धोखाधड़ी की है.पोर्शे, टोयोटा, मित्सुबिशी जैसी कंपनियां यूरोप में डीजल कारें बेचना बंद कर चुकी हैं.

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com