उन्होंने अपने हिस्से में धूप रखी ताकि दूसरों को छांव मिल सके

बारिश की बौछार अपने तन पर सही ताकि दूसरे भींगने से बच सकें। एक साधारण व्यक्ति ने 40 साल पहले एक असाधारण मुहिम शुरू की थी, जिसका सुपरिणाम कोलकाता को हरा-भरा और सुंदर बना रहे लाखों पेड़-पौधों के रूप में दिखाई दे रहा है।

आज भी पूरी शिद्दत से अपनी इस खास मुहिम में जुटे इस आम इंसान की यह बड़ी सोच देश ही नहीं, बल्कि दुनिया को प्रेरित करने की कुव्वत रखती है। यह आम इंसान हैं कोलकाता निवासी 61 वर्षीय अमित नाथ हाजरा उर्फ बाबलू दा। एक निजी कंपनी में छोटी सी नौकरी करते आए हैं। लेकिन कोलकाता के विभिन्न इलाकों में आज जो हरियाली नजर आती है, वह इन्हीं की देन है। चित्तरंजन एवेन्यू, गिरीश पार्क, डलहौसी, हावड़ा, विवेकानंद रोड समेत कोलकाता की विभिन्न गली-सड़कें उनके लगाए पौधों से भरी पड़ी हैं, जो आज विशालकाय पेड़ों का रूप लेकर लोगों को फल-फूल और ठंडी छांव प्रदान कर रहे हैं।

यह जज्बा ही नहीं जुनून भी है। दोनों घुटनों में आस्टियो आर्थराइटिस की समस्या होने के कारण वे ठीक से चल-फिर और बैठ नहीं पाते, लेकिन आज भी हर दिन पौधरोपण करते हैं। 2005 में जब यह समस्या शुरू हुई थी तो बहुत से लोगों ने उन्हें यह काम करने से मना किया, लेकिन पौधे लगाए बिना वे भला कहां रहने वाले थे। आखिरकार उनके आत्मबल को देखकर घुटने की बीमारी को भी घुटने टेकने पड़ गए। घुटनों में पट्टा (नी-बेल्ट) बांधे बाबलू दा को आज भी कोलकाता की सड़कों के किनारे पौधे रोपते हुए देखा जा सकता है।

पौधे लगाना शौक नहीं, जीवन का परम ध्येय :

चिलचिलाती धूप हो या मूसलाधार बारिश, अमित नाथ को ऑफिस के बाद जब भी समय मिलता है, वे एक झोले में पौधे, मिट्टी खुरचने वाले औजार, उर्वरक व रस्सी लेकर निकल पड़ते हैं। 61 साल के हो चुके अमित नाथ के लिए पौधे लगाना कोई शौक नहीं, बल्कि जीवन का एक ध्येय है, जो उन्हें संतुष्टि देता है। शायद पौधे लगाए बिना वे जी ही नहीं सकते। वे 1979 से बदस्तूर पौधे लगाते आ रहे हैं। अब तक लाखों पौधे लगा चुके हैं, जिनमें से बहुत पेड़ों में तब्दील हो चुके हैं। वे मुख्य रूप से आम, कटहल, वट, नीम, कदम्ब, कृष्णचूड़ा, राधाचूड़ा काठबादाम, छातिम, किघेलिया और पिनहाटा के पौधे लगाते हैं। अमित नाथ ने गिरीश पार्क इलाके में ऐसे भी कुछ पौधे लगाए हैं, जो 5,000 साल तक जीते हैं। इनमें एडेनसोनिया और डीडीजिटाटा (बाओबाब) के नाम उल्लेखनीय हैं।

मामूली वेतन, वो भी खर्च कर देते हैं पौधे खरीदने में :

अमित नाथ हावड़ा स्थित एक निजी संस्था में मामूली से वेतन पर काम करते हैं। उसका भी अच्छा-खासा हिस्सा पौधे खरीदने में खर्च कर देते हैं। वे विभिन्न नर्सरी, बोटेनिकल गार्डन और हार्टिकल्चरल सोसायटी से पौधे खरीदकर लाते हैं। अमित नाथ उत्तर कोलकाता के 33/सी, सुधीर चटर्जी स्ट्रीट में सात बाई दस फुट के छोटे से कमरे में पत्नी सुप्रीति के साथ रहते हैं। सुप्रीती भी इस मुहिम में उनका पूर्ण सहयोग करती है। बकौल अमित, पेड़-पौधे मेरे लिए संतान की तरह हैं। अमित सिर्फ पौधे लगाकर छोड़ नहीं देते, रोजाना जाकर पानी व उर्वरक भी देते हैं, जब तक पौधे खुद से बढ़ने की स्थिति में नहीं पहुंच जाते। बहुत से पौधों की घेराबंदी कर उन्होंने बोर्ड लगाकर अपील की कि पेड़-पौधों हमारे परिवार के सदस्य जैसे हैं। उन्हें नुकसान न पहुंचाए और न ही किसी को पहुंचाने दें।

तूफान ‘आइला’ के समय फूट-फूटकर रोए थे :

कोलकाता समेत बंगाल के विभिन्न हिस्सों में जब चक्रवाती तूफान ‘आइला’ ने हरियाली को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया था, तब अमित नाथ फूट-फूटकर रोए थे और उन्होंने दोगुनी गति से पौधे लगाकर उस नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की थी।

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