उत्तराखंड कैबिनेट बैठक में पिरूल नीति हुई मंजूर

कई सालों से अधर में लटकी पिरुल (चीड़ के पत्ते) से बिजली बनाने की नीति को बृहस्पतिवार को मंजूरी मिल गई। इसके अलावा उपनल कर्मचारियों के मानदेय बढ़ोतरी का फैसला भी कैबिनेट में आ गया। इसके साथ ही कैबिनेट मीटिंग में 12 बिंदुओं पर फैसले लिए गए।
 
उपनल के जरिए सरकारी प्रतिष्ठानों में कार्यरत संविदा कर्मियों का वेतन 1500 रुपए बढ़ा दिया गया है। पीआरडी के कर्मचारियों की दिहाड़ी 50 रुपए प्रतिदिन बढ़ी है। राज्य में पिरूल से 150 मेगावाट बिजली पैदा करने की संभावना जताई गई है। 2019 तक एक मेगावाट बिजली बनाने, 2030 तक 100 मेगावाट बिजली बनाने का लक्ष्य रखा गया है। जनता पिरूल से बिजली बनाएगी और सरकार खरीदेगी।

 

इसके साथ ही उत्तराखंड बहुद्देशीय वित्त विकास निगम कर्मियों को सातवें वेतन मान के हिसाब से वेतन देने का फैसला भी किया गया है। कैबिनेट ने नगर निकायों के स्वामित्व की सड़कें लोक निर्माण विभाग द्वारा बनवाए जाने के फैसले पर भी मुहर लगा दी। लोनिवि 12 फुट की सड़कें बनाएगा। कहा गया कि केदारनाथ में तीन भवनों का ध्वस्तीकरण किया जाएगा। जिंदल ग्रुप नए भवन बनाकर देगा। इसके लिए भूमि का चयन डीएम करेंगे। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को वैट की तर्ज पर जीएसटी की छूट भी मिलेगी।
  

बता दें कि पिरुल नीति का ड्राफ्ट उरेडा ने तैयार किया है। नीति को वन और सहित अन्य विभागों की मंजूरी मिलने के बाद सचिव समिति की बैठक में रखा गया था। सचिव समिति ने भी नीति को अपनी हरी झंडी दे दी है।

नीति के मुताबिक पिरूल के इस्तेमाल से 150 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। पिरुल से बिजली बनाने का संयंत्र लगाने की जिम्मेदारी वन पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों और सामुदायिक संगठनों को सौंपा जाएगा।

संयंत्र लगाने वालों को भी कई तरह की रियायत देने की बात नीति में कही गई है। इसे उद्योग दर्जा दिया गया है। संयंत्र लगाने के लिए जमीन खरीदने पर स्टांप ड्यूटी में छूट मिलेगी। पिरूल से बिजली बनाने की योजना से प्रदेश में 20 हजार लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है।   

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