आप भी जाने आखिर खुद को कैसे तैयार करते हैं बोलने के लिए रेडियो के नायक यानी RJ…

हेलो…। गुड मार्निंग, नमस्कार…। मैं हूं आरजे … और मैं आपको सुनवाने जा रहा हूं ये गाने। अपनी बक-बक, अंदाज और हाजिर जवाबी से लोगों का दिल जीतने वाले रेडियो स्टेशन के आरजे शहरियों के दिलों में अपनी खास जगह बना चुके हैं।

आरजे (रेडियो जॉकी) पूरब का अंदाज हो या चारू का बेबाकीपन, जावेद-मैंडी का कनपुरिया टच हो या सुगंधा की मीठी आवाज। शहरी इनकी बक-बक सुनने के लिए सुबह से ही रेडियो पर कान लगाकर बैठ जाते हैं। सवाल यह भी उठता है कि इन लोगों में इतनी बक-बक आती कहां से है? शो में बोलने के लिए कितनी मेहनत करते हैं?
लोगों के इन्हीं सवालों का जवाब देने के लिए अमर उजाला ने कुछ आरजे से की बातचीत…

शहर के नामी रेडियो स्टेशन की आरजे चारू कहती हैं कि बक-बक करना बिल्कुल मुश्किल नहीं है। हालांकि इस बात का ध्यान रखना होता है कि आप जो बोल रहे हैं, वह लोगों के दिन को कितना छूता है। हम लोगों को आब्जर्व करते हैं, उन्हीं में से ह्यूमर, इंटरटेनमेंट ढूंढने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा कई सारे टॉक शो, वीडियो देखते है जो कहीं न कहीं बोलने में मदद करते हैं। चारू कहतीं है कि बक-बक करना वैसे तो भगवान की ही देन है। उन्होंने एक किस्सा बताया कि मरियमपुर स्कूल में बोलने की वजह से उनको गले में चैटर बॉक्स का टैग लगाकर पूरे स्कूल में घुमाया गया था। बचपन से जो मुंह में आता था बोल देती थी। वहीं अंदाज आज भी कायम है।

आरजे पूरब कहते हैं कि असल जिंदगी में वे काफी शांत हैं। शो पर बोलने के लिए सुनता बहुत हूं। लोगों को सुनता हूं, शो देखता हूं, सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपडेट रहता हूं। केवल शो पर बोलता हूं, बाकी समय लोगों को सुनने की कोशिश करता हूं। कंटेंट पर फोकस रहता है। फेसबुक, व्हाट्सएप के वीडियो भी मदद करते हैं। कल क्या करना है कि इसकी तैयारी शो खत्म होने के बाद शुरू हो जाती है। अपनी टीम के साथ टॉपिक पर रिसर्च की जाती है। बोलने की स्क्रिप्ट नहीं रहती। केवल प्वाइंट्स होते हैं, अगर स्क्रिप्ट रहेगी तो बात करना मुश्किल होगा।

अरे भई बक-बक रहमानी मार्केट में मिलती है, वहीं से ही खरीद लाते हैं और लोगों को सुना देते हैं। कुछ इस अंदाज में बात करते हुए आरजे फजील और मैंडी हंस पड़े। स्टेशन पर ड्यूअल शो करने वाले आरजे फजील और मैंडी कहते हैं कि बक-बक करने के लिए वीडियो देखने की जरूरत नहीं पड़ती। हम खुद अपने वीडियो बनाते हैं और फेसबुक पर डालते हैं। कहते हैं कि किसी भी आरजे को आब्जर्वेशन की जरूरत होती है। टॉपिक क्या रहेगा, किसी टॉपिक पर कौन कितना बोलेगा, इसको प्वाइंट वार बना लिया जाता है। घूमते काफी हैं, शहर को देखते हैं, लोगों से बात करते हैं। उसमें से ही बोलने के लिए काफी मैटर मिल जाता है। कभी किसी की बात तो किसी का अंदाज।

आरजे सुगंधा कहती हैं कि सोशल मीडिया बक-बक करने में काफी मदद करता है। कोई सेलेब्रिटी ट्रोल हुआ नहीं कि बस हमें बक-बक करने का मौका मिल जाता है। चार घंटे के शो में आरजे को लगभग 20-25 मिनट बोलना होता है। 20-25 मिनट बोलने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। शो खत्म होने के बाद प्रोड्यूसर से डिस्कशन होता है। घर से स्टूडियो जाने और स्टूडियो से घर आने में चीजों को आब्जर्व करना पड़ता है, ताकि ह्ययूमर का तड़का लग सके। वीकएंड पर भी लोगों से मुलाकात करते हैं। जितना घूमेंगे, जितनी लोगों से बात करेंगे, उतने ही हम हाजिर जवाब होंगे। बचपन से बहुत बोलती थी, जो कॅरियर में मदद कर रहा है।

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