असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव पर इलाहाबाद में हुई पहली बैठक में थी लगी, चार प्रस्ताव किये गए थे पारित

 अंग्रेजों को भारत से निकालना निहत्थे भारतीयों के लिए आसान नहीं था। महात्मा गांधी ने इन्हीं निहत्थे भारतीयों को ऐसा अस्त्र दिया, जिसकी कल्पना उस समय नहीं की गई थी। यह अस्त्र था अंग्रेजी हुकूमत की कुछ बड़ी व्यवस्थाओं में असहयोग करने का। महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चलाए गए असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव पर मुहर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में 20 जून 1920 को हुई पहली बैठक में लगी थी।

हिंदू-मुस्लिम नेताओं की संयुक्त बैठक में चार प्रस्ताव पारित किए गए

असहयोग आंदोलन की भूमिका को मजबूत करने के लिए पहले खिलाफत आंदोलन का स्वरूप तैयार किया गया और उसी के तहत हुई हिंदू-मुस्लिम नेताओं की संयुक्त बैठक में चार प्रस्ताव पारित किए गए। इतिहासकारों की कलम से लिखी गईं किताबें इसकी साक्षी हैं लेकिन इतना जरूर है कि बैठक के स्थान और तारीख को लेकर मतभिन्नता भी है।

गांधी जी के नेतृत्व में इलाहाबाद में समिति गठित की गई

इतिहासकार प्रोफेसर अख्तर मलिक कहते हैं कि गांधी जी के इन विचारों को समर्थन देने के लिए हिंदू-मुस्लिम नेताओं ने 20 जून 1920 को एक सम्मिलित सभा कर वायसराय को चेतावनी देते हुए असहयोग के शस्त्र का प्रयोग करने का निश्चय किया था। 31 अगस्त को खिलाफत दिवस मनाया गया। गांधी जी के समर्थन में खिलाफत के नेताओं ने चार चरणों वाला एक असहयोग कार्यक्रम घोषित किया। इसमें उपाधियों का बहिष्कार, सिविल सेवाओं, सेना और पुलिस का बहिष्कार तथा करों (टैक्स) की अदायगी न करना शामिल था। गांधी जी के नेतृत्व में इलाहाबाद में खिलाफत आंदोलन को चलाने के लिए एक समिति गठित की गई। इस समिति ने 31 अगस्त 1920 को औपचारिक तौर पर असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी।

महात्मा गांधी इलाहाबाद में हुई अभाखिस की बैठक में शामिल हुए थे

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गांधी विचार और शांति अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी कहते हैं कि जून 1920 में महात्मा गांधी इलाहाबाद में हुई अखिल भारतीय खिलाफत समिति की बैठक में शामिल हुए थे। इसमें अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए अंग्रेजों की व्यवस्था के खिलाफ देश भर में असहयोग आंदोलन चलाने पर विमर्श हुआ था। वह आनंद भवन में रुके थे और कांग्रेस कमेटी तथा अखिल भारतीय खिलाफत समिति के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी।

म्योहाल के समीप हुई थी बैठक : प्रोफेसर हेरंब

इतिहासकार प्रोफेसर हेरंब चतुर्वेदी कहते हैं कि पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आटो बायोग्राफी में लिखा है कि मुसलमानों का कोई प्रतिनिधि है तो वह अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी ही है। नेहरू जी साफ लिखते हैं कि मुस्लिम लीग और ङ्क्षहदू महासभा में कोई अंतर नहीं हैं। उस बैठक में नेहरू जी मौजूद थे और गांधी जी को समर्थन दिया गया। प्रोफेसर चतुर्वेदी का मत है कि बैठक आनंद भवन में नहीं बल्कि म्योहाल के समीप हुई थी। इसमें महात्मा गांधी शामिल नहीं हुए। वह आनंद भवन में थे।

संपूर्ण गांधी वांगमय का दावा है उलट

इतिहासकारों के दावे के विपरीत सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की ओर से प्रकाशित कराई गई पुस्तक सम्पूर्ण गांधी वांगमय में दिए गए तथ्य कहते हैं कि इलाहाबाद में अखिल भारतीय केंद्रीय खिलाफत समिति की बैठक तीन जून 1920 को हुई थी। इसमें ङ्क्षहदू और मुसलमान संयुक्त रूप से शामिल हुए थे। इसमें गांधी जी ने भाषण भी दिया था। गांधी वांगमय के गांधी जी पर करीब 80 खंड प्रकाशित हुए।

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