अवांछित गर्भ से मुक्ति पाने के लिए अपनाएं ये उपाय

घर में बच्चो की किलकारियों से सूने घर में चमक आ आती है। और में मन में अच्छी एक अच्छी ख़ुशी बनी रहती है। बच्चो   की शरारतें देखसुन कर मातापिता का तनमन प्रफुल्लित हो उठता है। लेकिन अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती। 1-2 बच्चों का रोना, हंसना, झगडना हमारे मन को मोहता है, वहीं ज्यादा बच्चों का शोर-शराबा हमारे मन में वितृष्णा भर देता है। इसलिए आजकल माता और पिता दोनों ही अवंछित गर्भ से मुक्ति चाहते हैं। सदियों तक दुनिया के किसी भी कोने में कानून और धर्म ने गर्भपात को मान्यता नहीं दी।

उनकी दृष्टि में गर्भपात जुर्म ही बना रहा। इसलिए अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए महिलाओं को तरह-तरह की युक्तियया आजमानी पडीं। जिन के परिणामस्वरूप अनेक महिलाओं को अपनी जानें तक गंवानी प़डी। छुटकारा कैसे पाएं अनचाहे गर्भ को ढोना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए इससे छुटकारा पाना जरूरी हो जाता है। लेकिन कैसे ये बहुत जरूरी है कि पति पत्नि दोनों मिल कर गर्भपात का निर्णय लें। अनचाहा गर्भ आज कोई समस्या नहीं है। तकनीकी विकास के कारण आज गर्भपात कराना बहुत आसान हो गया है, इतना आसान कि गर्भपात के लिए अब महिला को अस्पताल में भर्ती होने की भी जरूरत नहीं प़डती।

5 से 9 सप्ताह का गर्भपात डाक्टर की देखरेख में सिर्फ दवाईयों की सहायता से किया गया गर्भपात यानी मेडिकल गर्भपात सबसे आसान व सुरक्षित है। 9 सप्ताह तक के गर्भ से इस पद्धति से मुक्ति पाई जा सकती है। गर्भ दवाइयों से ही गिराया जाता है, शल्य चिकित्सा व औजारों की जरूरत नहीं प़डती। मेडिकल गर्भपात गर्भ का पता लगने के तुरंत बाद कराया जा सकता है। यह गर्भपात घर पर ही हो सकता है। इस के लिए 2 प्रकार की दवाई 2 स्टेजों पर दी जाती है। एक दवा प्रोजेस्टोरोन प्रतिरोधी (एंटीप्रोजेस्टरोन)होती है जो प्रेाजेस्टोरोन के एक्शन को रोकती है। गर्भ की सुरक्षा के लिए प्रोजेस्टोरोन अत्यंत उपयोगी हारमोन है।

डाक्टर की सलाह मेडिकल गर्भपात के लिए डाक्टर के पास 2 बार जाना जरूरी है। पहली विजिट में डाक्टर गर्भ की स्थिति व समय के साथ अन्य कुछ जांचों के आधार पर आप को सलाह देती है कि आप के लिए मेडिकल गर्भपात ठीक रहेगा या नहीं। मेडिकल गर्भपात के कुछ दिन बाद फिर डाक्टर को दिखाना चाहिए। दवा का प्रभाव देखने के लिए डाक्टर द्वारा अल्ट्रासाउंड किया जाता है। जैसा कभी कभार प्राकृतिक गर्भपात में भी होता है कि गर्भ के कुछ अंश या टुक़डे गर्भाशय में ही रह जाते हैं। अगर ऎसा होता है तो इन्हें डी.एड.सी या फिर वैक्यूम एक्ट्रेक्शन से तुरंत निकाला जा सकता है।
फायदे मेडिकल गर्भपात की सफलता दर 90 से 98 प्रतिशत है। यानि केवल 2 से 10 प्रतिशत महिलाओं को मेडिकल गर्भपात के बाद सर्जिकल गर्भपात की जरूरत प़ड सकती है।

सर्जिकल गर्भपात अगर किसी वजह से गर्भ 9 सप्ताह से अधिक समय का हो गया है तो इस से छुटकारा पाने के लिए सर्जिकल गर्भपात सुरक्षित होगा। पहले 12 सप्ताह में सक्षन विधि डायलेटेशन एंड इवेक्यूएशन (डी.एंड.ई.) से गर्भपात सुरक्षित रूप से किया जा सकता है। यह एक छोटा सा ऑपरेशन होता है जिस में गर्भाशय ग्रीवा को सुन्न कर दिया जाता है। गर्भाशय के लिए गर्भाशय ग्रीवा को डायलेटर से चौ़डा किया जाता है और सक्शन केन्यूला लगा कर गर्भाशय में पल रहे गर्भ को सर्किग तकनीक से बाहर निकाला जाता है। जैसे ही टिशू निकाल दिए जाते हैं गर्भाशय पुन: संकुचित हो कर अपने सामान्य आकार का हो जाता है और बाकी बचे अंशो को भी बाहर धकेल देता है।

अधिकतर महिलाओं को इस दौरान मासिकधर्म के दौरान होने वाले दर्द जैसी दर्द की लहर उठती है। ऎसा बहुत कम होता है कि दर्द की लहर न उठे। जैसे ही ट्यूब हटाई जाती है दर्द अपनेआप कम हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में 5 से 10 मिनट का समय लगता है। प्राकृतिक या मेडिकल गर्भपात के बाद भी जिन महिलाओं के गर्भ के कुछ अंश गर्भाशय में रह जाते हैं, उन की क्लीलिंग भी इसी तकनीक से की जाती है। कुछ घंटों के लिए मरीज को अस्पताल में रखा जाता है फिर घर भेज दिया जाता है। इस आपरेशन के बाद कुछ दिन तक एंटिबायोटिक और दर्द निवारक दवाएं लेना जरूरी होता है। इस तकनीक से गर्भपात में कुछ जटिलताएं हो सकती हैं लेकिन यह आशंका 2 प्रतिशत से भी कम होती है।

सर्जिकल गर्भपात अगर किसी वजह से गर्भ 9 सप्ताह से अधिक समय का हो गया है तो इस से छुटकारा पाने के लिए सर्जिकल गर्भपात सुरक्षित होगा। पहले 12 सप्ताह में सक्षन विधि डायलेटेशन एंड इवेक्यूएशन (डी.एंड.ई.) से गर्भपात सुरक्षित रूप से किया जा सकता है। यह एक छोटा सा ऑपरेशन होता है जिस में गर्भाशय ग्रीवा को सुन्न कर दिया जाता है। गर्भाशय के लिए गर्भाशय ग्रीवा को डायलेटर से चौ़डा किया जाता है और सक्शन केन्यूला लगा कर गर्भाशय में पल रहे गर्भ को सर्किग तकनीक से बाहर निकाला जाता है। जैसे ही टिशू निकाल दिए जाते हैं गर्भाशय पुन: संकुचित हो कर अपने सामान्य आकार का हो जाता है और बाकी बचे अंशो को भी बाहर धकेल देता है। अधिकतर महिलाओं को इस दौरान मासिकधर्म के दौरान होने वाले दर्द जैसी दर्द की लहर उठती है। ऎसा बहुत कम होता है कि दर्द की लहर न उठे।

जैसे ही ट्यूब हटाई जाती है दर्द अपनेआप कम हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में 5 से 10 मिनट का समय लगता है। प्राकृतिक या मेडिकल गर्भपात के बाद भी जिन महिलाओं के गर्भ के कुछ अंश गर्भाशय में रह जाते हैं, उन की क्लीलिंग भी इसी तकनीक से की जाती है। कुछ घंटों के लिए मरीज को अस्पताल में रखा जाता है फिर घर भेज दिया जाता है। इस आपरेशन के बाद कुछ दिन तक एंटिबायोटिक और दर्द निवारक दवाएं लेना जरूरी होता है। इस तकनीक से गर्भपात में कुछ जटिलताएं हो सकती हैं लेकिन यह आशंका 2 प्रतिशत से भी कम होती है।

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