विरुपाक्ष मंदिर, कर्नाटक के बेल्लारी जिले के ‘हम्पी’में स्थित है। कभी हम्पी मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। विरुपाक्ष मंदिर ऐतिहासिक धरोहर के रूप में सदियों से प्रसिद्ध रहा है। यह मंदिर 15वीं शताब्दी में बनाया गया। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल है।
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 इतिहास के स्वर्ग पन्नों को पलटें तो ज्ञात होगा कि 1509 ई. में विजयनगर साम्राज्य के शासक कृष्णदेव राय ने यहां गोपुड़ा का निर्माण करवाया था। यह मंदिर ‘भगवान शिव’ को समर्पित है। विरुपाक्ष मन्दिर को ‘पंपापटी’नाम से भी जाना जाता है।
इतिहास के स्वर्ग पन्नों को पलटें तो ज्ञात होगा कि 1509 ई. में विजयनगर साम्राज्य के शासक कृष्णदेव राय ने यहां गोपुड़ा का निर्माण करवाया था। यह मंदिर ‘भगवान शिव’ को समर्पित है। विरुपाक्ष मन्दिर को ‘पंपापटी’नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर,हम्पी के प्राचीन स्मारकों में से एक है। मन्दिर का शिखर जमीन से 50 मीटर ऊंचा है। इस विशाल मन्दिर के अंदर अनेक छोटे-छोटे मन्दिर हैं, जो विरुपाक्ष मन्दिर से भी प्राचीन हैं। मन्दिर के पूर्व में पत्थर का एक विशाल नंदी है,जबकि दक्षिण की ओर गणेश की विशाल प्रतिमा है।
यहां अर्ध सिंह और अर्ध मनुष्य की देह धारण किए नृसिंह की 6.7 मीटर ऊंची मूर्ति है। विरुपाक्ष मंदिर के प्रवेश द्वार का गोपुरम हेमकुटा पहाड़ियों व आसपास की अन्य पहाड़ियों पर रखी विशाल चट्टानों से घिरा है।
हिंदू पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि त्रेतायुग में जब रावण,भगवान शंकर द्वारा दिए हुए शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था तो वह यहां पर रुका था। भगवान भोलेनाथ ने कहा कि घर पहुंचने से पहले कहीं पर भी इस शिवलिंग को धरती पर मत रखना।
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कुछ ऐसा हुआ कि रास्ते में रावण ने शिवलिंग को एक वृद्ध व्यक्ति से पकड़ने के लिए कहा, लेकिन वृद्ध ने अपनी कमजोरी का कारण बताते हुए नहीं पकड़ा। तब रावण ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। तब से वह शिवलिंग यहीं है।
जिसे बाद में राजा कृष्णदेव राय ने विरूपाक्ष मंदिर का निर्णाण करवाया। कहते हैं यदि रावण इस शिवलिंग को धरती पर नहीं रखता तो आज ये शिवलिंग श्रीलंका में होता।
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