मोहनजो दारो है मुर्दों का टीला, रितिक की फिल्म में आएगा नजर

मोहनजो दारो है मुर्दों का टीला, रितिक की फिल्म में आएगा नजर
मोहनजो दारो है मुर्दों का टीला, रितिक की फिल्म में आएगा नजर

आपने रितिक रोशन की फिल्म मोहनजो दारो के बारे में खूब सुना होगा अब तो इस फिल्म का मोशन पोस्टर भी रिलीज हो गया लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर मोहनजो दारो है क्या, नहीं ना तो यहां जान 

रितिक रोशन की फिल्म मोहनजो दारो का मोशन पोस्टर रिलीज हो चुका है। ये फिल्म प्राचीन नगर मोहनजो दारो की पृष्ठभूमि पर आधारित एक एतिहासिक फिल्म है। इस फिल्म में रोमांच के साथ-साथ रोमांस का भी तड़का लगाया गया है। ये तो हुई रितिक की फिल्म की बात लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर मोहनजो दारो है क्या, शायद नहीं पता होगा तो जानिए इसके बारे में शायद ये बातें आपको फिल्म में भी देखने को ना मिलें। मोहनजो दड़ो एक सभ्यता थी जो दुनिया में सबसे पहले विकसित होने वाले समाज से बनी। यह वो बस्ती थी जहां दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी कालीन सभ्यता का जन्म हुआ। तो आइए जानते हैं मोहनजो दड़ो से जुड़े ऐसे तथ्यों को जिनसे आप रह गए अनजान.

 5000 साल से भी पुरानी सभ्यता मुअनजो दड़ो की खोज 1921 में हुई थी। इसके बाद कई दशकों तक अनेकों आर्कियोलॉजिस्ट यहां आकर सभ्यता से जुड़े तथ्यों व सबूतों की छानबीन करते रहे। 1980 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर घोषित किया गया।

यहां पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियां और मुहरें आदि मिले। पिछले 100 सालों में अब तक इस शहर के एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है, और अब वह भी बंद हो चुकी है। माना जाता है कि यह शहर 200 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला था। यहाँ दुनिया का प्रथम स्नानघर मिला है जिसका नाम बृहत्स्नानागार है और अंग्रेजी में Great Bath कहते हैं। 1940 में खुदाई के दौरान पुरातात्विक विभाग के एमएस वत्स को एक शिवलिंग मिला जो लगभग 5000 पुराना है। शिवजी को पशुपतिनाथ भी कहते हैं। यानी कि ये लोग पशुपतिनाथ की पूजा करते थे। 08MohenjoDaro(1)

मोहनजो दड़ो की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम सकते हैं। यह शहर जहां था आज भी वहीं है। यहां की दीवारें आज भी मजबूत हैं। इस शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर उस बैलगाड़ी की रून-झुन सुन सकते हैं जिसे आपने पुरातत्व की तस्वीरो में देखा है। इस सभ्यता में पक्की ईंटों की दीवारें थीं। साथ ही 90 डिग्री समकोण पर काटती हुई सड़कें थीं। यहां ढकी हुई नालिंया भी थीं। 

दुनिया में सूत के दो सबसे पुराने कपड़ों में से एक का नमूना यहां पर ही मिला था। खुदाई मे यहां कपडो की रंगाई करने के लिये एक कारखाना भी पाया गया है। इतिहासकारों का कहना है कि मोहनजो दड़ो सिंघु घाटी सभ्यता में पहली संस्कृति है जो कि कुएं खोद कर भू-जल तक पहुंची थी। मुअन जो दड़ो में करीब 700 कुएं थे। मोहनजो दड़ो सभ्यता की लिपी आज तक कोई पढ़ व समझ नहीं सका। मोहनजो दड़ो का संग्रहालय भी है। जिसमें कि मुख्य वस्तुएं कराची, लाहौर, दिल्ली और लंदन में हैं। यहां काला पड़ गया गेहूं, तांबे और कांसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य भी रखे गए हैं।

यह सभ्यता विलुप्त कैसे हुई यह अभी तक कोई नहीं जान सका। कुछ लोगों का कहना है महामारी के चलते ये लोग मर गए थे तो कुछ कहते हैं कि आर्य ने यहां आकर तबाही मचाई। खैर अभी तक कुछ प्रमाणित नहीं हो सका है। मोहनजो दड़ो या मुअन जो दड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ होता है ‘मृतकों का टीला’।

 

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