प्रेगनेंसी में होने वाली प्रेगनेंसी जिंजिवाइटिस की समस्या से बचने के लिए करे ये उपाय…

क्या आप को पता है कि दांतों की खराब देखभाल से आप की गर्भावस्था को नुकसान हो सकता है। गर्भधारण करने के बाद आप के दांतों की देखभाल सिर्फ आप तक सीमित नहीं रहती। यह आप के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों ने जांच की कि मसूड़े से जुड़ी समस्याओं का गर्भावस्था के नतीजों पर क्या असर पड़ता है।  उन्होंने अध्ययन में पाया कि जिन महिलाओं को मसूड़ों की समस्या है उन्हें गर्भधारण करने में उन महिलाओं के मुकाबले 6 महीने का अधिक समय लगा जिन्हें मसूड़ों की समस्या नहीं थी। गर्भावस्था के दौरान दांतों की कौन सी बीमारियां होती हैं और उन की देखभाल केसे की जाए, इस बारे में बता रही हैं.

प्रेग्नेंसी जिंजिवाइटिस : प्रेगनेंसी जिंजिवाइटिस दूसरे तीसरे महीने में शुरू होती और गर्भावस्था के आठवें महीने तक इस की गंभरता बढ़ सकती है, इस समय कुछ महिलाओं के मसूड़ों में खून आना, सूजन, लालिमा या फूलापन महसूस हो सकता है। कुछ मामलों में मसूड़े सूज जाते हैं और प्रेगनैंसी जिंजिवाइटिश से पीड़ित होती है। वे इरीटेंट्स के कारण बड़ी गांठ बना सकते हैं। ये गांठें या वृद्धि कि हुए भाग प्रेगनैंसी ट्यूमर कहलाते हैं। ये कैंसर युक्त नहीं हो और सामान्यतय इन में दर्द नहीं होता है। ये शिशु के जन्म के बाद प्रायः गायब हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इन्हें दांतों के सर्जन, जैसे कि पेरियोडोंटिस्ट कहलाने वाले मसूड़ों के उपचार के विशेषज्ञ द्वारा हटाए जाने की जरूरत पड़ सकती है, अपने मसूड़ों को पूरी तरह स्वस्थ बनाए रखना, गर्भावस्था से जुड़ी ऐसी पेरियोडोंटल समस्याओं से बचाव के सर्वोत्तम तरीका है।  महिलाओं में परिसंचारी यौन हार्मोन- एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरोन की सांद्रताएं बढ़ना गर्भावस्था से जुड़ी परियोडोन्टल समस्याओं का कारण होता है. परियोडोन्टस रोग जैव शारीरिक द्रवों का स्तर बढ़ाते हैं जो प्रसव पीड़ा उत्पन्न करते हैं। योनि मार्ग से उपर जाते हुए मार्ग से भ्रूण तक संक्रणम नहीं पहुंचता बल्कि यह रूधिर प्रवाह में प्रवेश करते हैं और मुख व गुहा से नीचे जाते हैं।

प्रेग्नेंसी ओरल हैल्थ को सुधारने की खास बातें: अपने दांतों व शिशु के लिए खानपना सही रखना- जितनी अधिक बार आप स्नैक्स खाएंगी. दंतक्षय बनने की सम्भावनाएं उतनी ही बढ़ जाएंगी, साथ ही कुछ अध्ययनों से पता चला है कि दंतक्षय के लिए जिम्मेदार जीवाणु, माता से उस के शिशु में पहुंच जाते हैं, इसलिए अपने खानपान को ले कर विशेष रूप से सजग रहें। ओरल हैल्थ को सुधारने और मुंह की साफसफाई पर ध्यान देने की सलाह देने से मां से शिशु तक ऐसे वैक्टीरिया पहुंचने की सम्भावना कम हो जाती है। गर्भावस्था के 40 सप्ताहों के दौरान मसूड़ों की समस्याएं पनपने से रोकथाम करना, माता और शिशु के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। .चीनी युक्त स्नैक्स खाने से बचने की कोशिश करें व कुछ खाने के बाद हर बार अच्छी तरह पानी से कुल्ला कर के मुंह को साफ करें।

प्रेग्नेंसी के दौरान जाने पेरियोडोन्टल हेल्थ की स्थिति: यदि आप गर्भवती हैं या ऐसी योजना है, तो आप को जानना चाहिए कि आप के पेरियोडोन्टल स्वास्थ्य की स्थिति, आपकी गर्भावस्था के दौरान पेरियोडोन्टल रोग का अनुभव करने वाल महिलाओं में प्रीक्लैम्प्सिया विकसित होने का खतरा दोगुना होता है, जिस में रक्तचाप उच्च हो जाता है व यूरिन में प्रोटीन जाने लगता है। इस से माता व उस के शिशु के लिए गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। अगर भविष्य में आप की मां बनने की योजना है तो पूरी तरह से पेरियोडेन्टल चैकअप कराने के लिए आप को अपने पेरियोडोन्टिस्ट के यहां अवश्य जाना चाहिए।

शिशु का सामान्य से कम वजन होने का खतरा: अध्ययनों से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान पेरियोडोन्टल रोग से पीड़ित महिलाओं में समय पूर्व प्रसव (37 सप्ताह से पहले) या कम वजन (2.5 किलोग्राम से कम) का खतरा भी हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान पेरियोडोन्टाइटिस का उपचार करने से समय पूर्व प्रसव के जोखिम को टाला जा सकता है।

प्रेग्नेंसी में कब न करें दांतों का इलाज: गर्भावस्था के शुरुआती त्रैमास व तीसरे त्रैमास के दूसरे अर्द्धभाग के दौरान दांतों के उपचार से बचना चाहिए क्योंकि यह शिशु की वृद्धि व विकास के लिए महत्वपूर्ण समय होता है। दूसरे त्रैमास के दौरान नियमित इलाज किया जा सकता है। लेकिन दांतों के इलाज की ऐसी सभी प्रक्रियाओं को प्रसव पश्चात तक के लिए टाल देना चाहिए, जो टाली जा सकती हों। गर्भावस्था के दौरान दांतों का एक्स रे कराने से बचने की सलाह दी जाती है।

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