दवा कंपनी रैनबैक्सी के पूर्व मालिकों मलविंदर,शिविंदर को देने होंगे ढाई हजार करोड़

ranbaxy_singh_bros_201655_173642_05_05_2016सिंगापुर। दवा कंपनी रैनबैक्सी के पूर्व मालिकों मलविंदर मोहन सिंह और शिविंदर मोहन सिंह को बड़ा झटका लगा है।

यहां की आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल से सिंह बंधु को जापानी फार्मा कंपनी दायची सांक्यो को 2562.78 करोड़ रुपये बतौर हर्जाना देने के आदेश मिले हैं। अपनी हिस्सेदारी की बिक्री के दौरान जापानी फर्म से जानकारी छुपाने के लिए ट्रिब्यूनल ने यह कार्रवाई की है।

यह कहानी 2008 से शुरू होती है। तब सिंह बंधु ने रैनबैक्सी में अपनी पूरी हिस्सेदारी दायची को बेची थी। करीब 35 फीसद हिस्सेदारी का सौदा 2.4 अरब डॉलर में हुआ था। आज की तारीख में यह रकम करीब 156 अरब रुपये बैठती है।

मामले ने उस वक्त करवट लिया जब रैनबैक्सी को तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने के आरोप में अमेरिकी न्यायिक विभाग को 50 करोड़ डॉलर (करीब 3,300 करोड़ रुपये) चुकाने पड़े। इसके बाद 2013 में दायची ने सिंगापुर में आर्बिट्रेशन का मामला दर्ज कराया।

इसमें कंपनी ने भारतीय प्रमोटरों पर जानकारी छुपाने का आरोप लगाया। बता दें कि मलविंदर सिंह अभी फोर्टिस हेल्थकेयर के चेयरमैन हैं। शिविंदर मोहन सिंह पहले ही ग्रुप कंपनियों से इस्तीफा देने के बाद राधा स्वामी सत्संग से जुड़कर संन्यासी हो चुके हैं।

ऐसे में कह सकते हैं कि ताजा आदेश से मलविंदर ही प्रभावित होंगे। जब मलविंदर से संपर्क किया गया तो उन्होंने मामले पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया।

पूर्व प्रमोटरों की हिस्सेदारी खरीदने के बाद दायची को रैनबैक्सी में मेजॉरिटी हिस्सेदारी पाने के लिए करीब 22 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। 2014 में दायची ने भी रैनबैक्सी को सनफार्मा को बेच दिया। सनफार्मा ने मार्च 2015 में इस कंपनी का खुद में विलय कर लिया।

बीते अप्रैल में दायची ने सनफार्मा में अपनी पूरी करीब नौ फीसद हिस्सेदारी बेच दी। भारतीय फर्म में रैनबैक्सी के विलय के बाद उसे यह मिली थी। यह सौदा 20,420 करोड़ रुपये में हुआ था।

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