ट्रंप के ताइवानी राष्ट्रपति से चर्चा पर बौखलाया चीन, विवादित क्षेत्र में किया युद्धाभ्यास

south-china-sea_1469003263नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को नजरअंदाज करते हुए ताइवान की राष्ट्रपति से फोन पर बात की थी। इस बातचीत से चीन इस कदर बौखला गया कि उसने कोरिया के समीप बोहाई सागर इलाके में अपनी एयरक्राफ्ट कैरियर और वॉरशिप के साथ लाइव सैन्य ड्रिल शुरू कर दी है। यह पहला मौका है जब चीन ने इस तरह की ड्रिल शुरू की है। चीन की यह हरकत न सिर्फ अमेरिका के भावी राष्ट्रपति को खुली चुनौती है बल्कि इससे दक्षिण चीन सागर से जुड़ी भारत की चिंता भी बढ़ेगी।
 चीन के सरकारी मीडिया ने चीनी सेना द्वारा इस सैन्य अभ्यास की पुष्टि की है। बृहस्पतिवार को चाइनीज सेंट्रल टेलिविजन ने बताया कि चीन ने अपने 10 समुद्री जहाज और 1 विमान वाहक एयरक्राफ्ट बोहाई सागर क्षेत्र में उतार दिए हैं जो हवा से हवा, हवा से समुद्र और समुद्र से हवा में युद्ध करने का अभ्यास कर रहे हैं। इस युद्धाभ्यास में चीन की खतरनाक मिसाइलों से लैस शेनयांग जे-15 फाइटर जेट भी शामिल है। चैनल ने दावा किया कि – ‘यह पहला मौका है जब एक विमान वाहक दस्ते ने असली गोलाबारूद और सेना के साथ इस तरह युद्ध अभ्यास किया है।’
बोहाई के पास वाला यह इलाका दक्षिणी चीन सागर में स्थित है जहां चीनी सेना की मौजूदगी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए चिंता का सबब बन गई है। दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अमेरिका पहले ही समुद्री चौकियों का सैन्यीकरण करने पर चीन की आलोचना कर चुका है। साथ ही, अमेरिका लगातार इस क्षेत्र में अपनी हवाई और समुद्री उपस्थिति दर्ज करा रहा है। चीन द्वारा इस क्षेत्र पर अपना विशेषाधिकार स्थापित करने के प्रयासों का कई देश विरोध कर चुके हैं।
बुधवार को अमेरिका के एक थिंक टैंक ने कहा था कि चीन पिछले कुछ समय से दक्षिणी सागर क्षेत्र के अपने मानव-निर्मित द्वीपों पर एंटी-एयरक्राफ्ट और एंटी-मिसाइल सिस्टम को तैनात कर रहा है। इसके जवाब में चीन की ओर से कहा गया कि इस इलाके में अपना सैन्य ढांचा लगाने का उसे पूरा अधिकार है। चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने कहा कि बृहस्पतिवार को बोहाइ सागर के पास जिस क्षेत्र में युद्धाभ्यास किया गया है वहां चीन के अलावा किसी और देश का दावा नहीं है। 

तो इसलिए दबंगई दिखा रहा है चीन

दक्षिण चीन सागर के 35 लाख वर्ग किलोमीटर वाले क्षेत्र में तेल और गैस के भंडारों पर चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलयेशिया, ताइवान, जापान और ब्रुनेई अपना दावा करते रहे हैं। यह क्षेत्र कारोबार के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग भी है, जहां हर साल 7 ट्रिलियन डॉलर का व्यवसाय होता है, जिसमें अमेरिका का बड़ा हिस्सा है। यहां वियतनाम के दावे वाले क्षेत्र से भारत को तेल की खोज का निमंत्रण मिला है।
चीन इसमें बड़ी रुकावट बना हुआ है। चीन इस इलाके से होकर भारत आने वाले माल की आवाजाही भी प्रभावित करता है। ट्रंप द्वारा चीन को सूचित किए बिना ताइवान की राष्ट्रपति से फोन पर बात करना तो महज एक बहाना है।
सच्चाई यह है कि अमेरिका शुरू से इस मार्ग पर चीन की हरकत का विरोध करता रहा है। लेकिन पीओके से होकर पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक अपना सड़क मार्ग (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) बनाने के बाद चीन की पहुंच जलमार्ग से दक्षिण चीन सागर तक काफी आसान हो गई है। यही कारण है कि चीन इस इलाके में पहले से सैन्य गतिविधियां बढ़ाकर अपने दावे को मजबूत बनाए रखना चाहता है। 
 
 

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