खुशखबरी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के पौने दो लाख कर्मियों को मोदी सरकार से मिलेगी डीओपीटी

कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन में फंसे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के करीब पौने दो लाख कर्मियों की छुट्टियों का निपटारा होने की आस अब नजर आने लगी है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि 25 मार्च के बाद लॉकडाउन की वजह से जो कर्मी अपनी ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर सके हैं, उनके मामले में 1 नवंबर 1971 को डीओपीटी की तरफ से जारी आदेशों को आधार मानते हुए फैसला लिया जाए।

साथ ही यदि कोई फोर्स हेडक्वार्टर अपने स्तर पर यह मामला निपटा रहा है तो वह भी गृह मंत्रालय को जानकारी देगा कि उसने छुट्टियों का मामला सुलझाने के लिए कौन सा तरीका अपनाया है। अगर मामले में पेंच फंसा है, तो कर्मियों की इन छुट्टियों को ‘स्पेशल कैजुअल लीव’ में शामिल कर केस खत्म किया जाए।

बता दें कि कोरोना संक्रमण की वजह से केंद्रीय सुरक्षा बल, सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी, एनएसजी और असम राइफल में करीब बीस फीसदी जवान छुट्टी पर हैं।

इन्हें 25 मार्च के आसपास ड्यूटी ज्वाइन करनी थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते देश में ट्रांसपोर्ट के सभी साधन बंद हो चुके थे। ऐसे में इनके फोर्स हेडक्वार्टर ने कहा, ऐसे सभी कर्मी अपने घर पर ही रहें।

जब लॉकडाउन खत्म होगा तो उनके आने की व्यवस्था की जाएगी। लॉकडाउन के चार चरण तो आ गए, लेकिन छुट्टी पर गए कर्मी वापस नहीं आ सके। ट्रेन चालू होने के बाद अब इनकी वापसी का प्लान तैयार किया जा रहा है।

इससे पहले पेंच यह फंस गया है कि जो कर्मी लॉकडाउन के चलते अपने घर पर रहे हैं, विभाग उनकी छुट्टियों का निपटारा कैसे करे। उन्हें किस खाते में जोड़े, इसी को लेकर अधिकारी माथापच्ची में लगे हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि सभी बल मुख्यालय लॉकडाउन में हुई छुट्टियों का हिसाब-किताब डीओपीटी के 1971 में जारी आदेश के तहत करें।

इस आदेश में लिखा है कि ऐसी आपात स्थिति में कर्मियों की छुट्टियों को स्पेशल केजुअल लीव के अंतर्गत माना जाए। हालांकि इसके लिए संबंधित मंत्रालय की स्वीकृति भी लेनी होती है।

यदि कहीं पर कर्फ़्यू लगा है, ट्रांसपोर्ट के साधन बंद हैं तो ऐसी स्थिति में छुट्टी को स्पेशल केजुअल लीव माना जाएगा।

वजह, ये दोनों स्थितियां कर्मी के नियंत्रण से बाहर होती हैं। 1971 के आदेश में भी कहा गया है कि ये आदेश उन कर्मियों पर लागू होंगे जो अपने कार्यस्थल से तीन मील की दूरी पर रहते हैं।

 

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