क्या खोया क्या पाया इस यात्रा से?

s2016060784419_08_06_2016 (1)प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपनी 5 दिनी विदेश यात्रा पर रवाना हुए थे तो विदेश मंत्रालय की तरफ से मिले अपडेट में कहा गया था कि इस यात्रा का मुख्य मकसद ऊर्जा, पर्यावरण, रक्षा और सुरक्षा जैसे विभिन्न् क्षेत्रों में हुई प्रगति का जायजा लेना और भविष्य में आपसी सहयोग की गति तेज करना है। ऐसा लगता है पिछले दो वर्षों में प्रधानमंत्री ने जिस ‘नेबरहुड फर्स्ट” को भारतीय विदेश नीति के फास्ट ट्रैक पर लाने, एक्ट ईस्ट की नीति पर बल देने तथा शेष विश्व के साथ संतुलन के साथ आगे बढ़ने की जो कोशिशें शुरू की थीं, उनके मिले-जुले परिणाम ही सामने आ पाए। इसलिए अब भारतीय राजनय के समक्ष पहला विषय इन नीतियों की समीक्षा का तो था ही, नई आवश्यकताओं के अनुरूप भारत की विदेश नीति को आगे बढ़ाने का भी था, ताकि नए संयोजनों के जरिए राजनय की स्थायी उपलब्धियां हासिल हो सकें, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता, एनएसजी की सदस्यता और एमटीसीआर की सदस्यता। क्या यह सब इस यात्रा से हासिल हुआ?

भारतीय विदेश नीति लंबे समय से स्टैंडबाय मोड पर दिख रही थी, इसलिए देश की अपेक्षाएं नई सरकार से कुछ अधिक थीं। उन अपेक्षाओं पर शत-प्रतिशत खरे उतरने का श्रेय तो नेतृत्व को नहीं दिया जा सकता, लेकिन कूटनीतिक सक्रियता से मिले परिणामों को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता। रही बात प्रधानमंत्री की वर्तमान 5 दिनी यात्रा की तो उसके दो प्रमुख उद्देश्य थे। पहला आर्थिक और दूसरा सामरिक। मोदी की इस यात्रा ने अफगानिस्तान, कतर, स्विट्जरलैंड और अमेरिका के साथ भारत का जो सांस्कृतिक, आर्थिक, सुरक्षात्मक और सामरिक संयोजन किया है, उसे प्रथमदृष्टया सामरिक कूटनीति के लिहाज से लाभदायक माना जा सकता है। मोदी ने भारतीय राजनय को आर्थिक ट्रैक पर कहीं तेजी से बढ़ाने की कोशिश की है क्योंकि उनके महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट इसके केंद्र में थे। इस दृष्टि से उम्मीद थी कि मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्मार्ट सिटी योजना, स्वच्छ ऊर्जा आदि के लिए कतर और स्विट्जरलैंड से धन मिलने की संभावनाएं बढ़ेंगी। अफगानिस्तान में सलमा बांध का उद्घाटन कर पड़ोसी के साथ सांस्कृतिक जीवंतता को सार्थक करते हुए प्रधानमंत्री जब कतर पहुंचे तो वहां भारत और कतर के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। भारत और कतर ने वित्तीय खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान, धन शोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने तथा गैस संपन्न् खाड़ी देश से बुनियादी ढांचे में विदेशी निवेश आकर्षित करने सहित 7 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। ध्यान रहे कि कतर एक गैस बहुल खाड़ी देश है, जहां विदेशी निवेश की संभावनाएं पर्याप्त हैं। यानी कतर भारत की ऊर्जा और आर्थिक जरूरतों को एक साथ पूरा करने में सहायक हो सकता है। साथ ही वित्तीय खुफिया इकाई भारत और कतर वित्तीय सूचना इकाई (क्यूएफआईयू) के बीच हुए एमओयू पर हस्ताक्षर से धन के प्रवाह का पता लगाने और कतर से भ्ाारत में निवेश में मदद मिलेगी। इससे अधिकारियों को धन शोधन, आतंकवाद वित्त पोषण और अन्य आर्थिक अपराधों का पता लगाने में भी मदद मिलेगी।

स्विट्जरलैंड में महत्वपूर्ण उपलब्धि न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत के शामिल किए जाने के लिए समर्थन संबंधी रही। हालांकि स्विट्जरलैंड के साथ टेक्नोलॉजी और निवेश के साथ-साथ काले धन के मसले पर बातचीत की संभावनाएं थीं, क्योंकि स्विट्जरलैंड भारतीय टेक्नोलॉजी के आधुनिकीकरण और बड़े पूंजी निवेश के लिए तैयार हो सकता था। हालांकि काले धन पर ऐसा कोई आश्वासन नहीं मिला है।

इस यात्रा में अमेरिका में प्रधानमंत्री की पहलकदमी सबसे महत्वपूर्ण रही, जहां प्रधानमंत्री ने अमेरिकी संसद को संबोधित कर भारतीय लोकतंत्र की समृद्धता और गतिशीलता की अनुभूति कराई और मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था में प्रवेश पाकर ग्लोबल स्ट्रेटेजिक आर्म्स व्यवस्था का हिस्सा बना। विशेष बात यह कि मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) में भारत के शामिल होने के बाद अब भारत अपनी ब्रह्मोस जैसी उच्च तकनीकी मिसाइलें मित्र देशों को बेच सकेगा, अमेरिका से ड्रोन विमान खरीद सकेगा आदि। यही वजह है कि एमटीसीआर की घोषणा के बाद भारत और अमेरिका भारतीय सेना को प्रीडेटर श्रंखला के मानवरहित विमान बेचने से जुड़ी अपनी चर्चा को तेज कर सकते हैं।

इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एमटीसीआर और तीन अन्य निर्यात नियंत्रण व्यवस्था- ऑस्ट्रेलिया समूह, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह और वासेनार समझौते में भारत की सदस्यता का पुरजोर समर्थन किया था। वहीं भारत के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य बनने के मामले में ओबामा प्रशासन फिलहाल सब अच्छा रहने की ही कामना कर रहा है। हालांकि चीन इस समूह में भारत की सदस्यता का विरोध कर रहा है। चीन का तर्क है कि भारत एनएसजी में प्रवेश पाने की योग्यता नहीं रखता, क्योंकि उसने एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

फिलहाल भारत वैश्विक बैलिस्टिक मिसाइल प्रसार व्यवस्था में शामिल हो गया था और आशा भी थी कि मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था में भारत को प्रवेश मिल जाएगा। इसमें प्रवेश पाकर भारत ने एक सामरिक उपलब्धि तो हासिल कर ली है, लेकिन अभी एनएसजी और सुरक्षा परिषद में प्रवेश का प्रश्न बरकरार है, जो भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत के लिए अहम है। इसलिए उपलब्धि अभी अधूरी है।

 

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