अरुण जेटली वकील नहीं बनना चाहते थे – एक प्रखर राजनेता देश ने खो दिया

अरुण जेटली के रूप में भारत ने एक प्रखर वकील और राजनेता को खो दिया है। 28 दिसंबर 1952 को जन्में अरुण जेटली ने 24 अगस्त 2019 को अंतिम सांस ली। राजनीतिक जीवन में उन्होंने केंद्र सरकार में वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री जैसे अहम पद संभाले। एक सफल राजनीतिज्ञ होने के साथ अरुण जेटली की पहचान एक बेहद सफल वकील के रूप में भी रही है। वह सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील रहे हैं। चलिए एक वकील के तौर पर अरुण जेटली के करियर पर एक नजर डालते हैं…

वकील नहीं बनना चाहते थे जेटली

यह बात शायद कम ही लोगों को पता है कि अरुण जेटली वकालत नहीं करना चाहते थे। उनकी पहली पसंद कुछ और ही थी। जी हां, वे एक चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहते थे, लेकिन वे इस करियर की तरफ आगे नहीं बढ़ सके। आखिरकार उन्होंने अपने इस पहले प्यार को अलविदा कहा और वकालत करने लगे।

बोफोर्स घोटाले की जांच में पेपरवर्क

LL.B. करने के बाद सन 1977 में अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट और देश की कई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी। जनवरी 1990 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अरुण जेटली को वरिष्ठ वकील नियुक्त किया। इससे पहले साल 1989 में केंद्र की वीपी सिंह सरकार ने उन्हें एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया। इस दौरान उन्होंने बोफोर्स घोटाले के संबंध में जांच के लिए पेपरवर्क किया।

इन नेताओं के लिए की वकालत

अरुण जेटली ने कई बड़ी-बड़ी राजनीतिक हस्तियों के लिए कोर्ट रूम में दलीलें दी हैं। उनके क्लाइंटों की लिस्ट में जनता दल के नेता शरद यादव से लेकर कांग्रेस नेता माधव राव सिंधिया और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी तक रहे हैं। उन्होंने कानून और करंट अफेयर्स पर कई लेख लिखे हैं। इंडो-ब्रिटिश लीगल फोरम के सामने उन्होंने बारत में भ्रष्टाचार और अपराध पर एक पेपर भी प्रस्तुत किया था।

यूएन में जेटली

भारत सरकार ने अरुण जेटली को जून 1998 में संयुक्त राष्ट्र भेजा। संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली के इस सत्र में ड्रग्स और मनी लॉन्ड्रिंग कानून से संबंधित डिक्लेरेशन को मंजूरी मिली थी।

विदेशी कंपनियों की पैरवी

अरुण जेटली ने कोर्ट रूम में दुनिया की बड़ी कंपनियों के लिए भी दलीलें दी हैं। इसी तरह का उनका एक क्लाइंट पेप्सीको कंपनी रही है। अरुण जेटली ने पेप्सीको की तरफ से कोका कोला के खिलाफ केस लड़ा। इसी तरह की कई अन्य कंपनियों के लिए भी वह कोर्ट रूप में गए। केंद्र सरकार में कानून मंत्री रहने के बाद साल 2002 में उन्होंने एक केस उन 8 कंपनियों की तरफ से लड़ा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने उन पर हिमालय में मनाली-रोहतांग रोड पर कई पत्थरों पर विज्ञापन रंगने पर कंपनियों को चेतावनी दी और फाइन लगाया था। साल 2004 में वह कोकाकोला कंपनी की तरफ से राजस्थान हाईकोर्ट में पेश हुए। 

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