अमावस्या के दिन स्नान, दान, व्रत और पूजा-पाठ से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है: धर्म

धार्मिक शास्त्रों में अमावस्या तिथि का बड़ा महत्व माना गया है। 22 मई को ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पड़ रही है। इस दिन शनि जयंती और वट सावित्री व्रत जैसे पावन पर्व मनाए जाते हैं।

मत्स्य पुराण, स्कंद, ब्रह्मा और गरुड़ पुराण में अमावस्या तिथि का महत्व बताया गया है। इन ग्रंथों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या तिथि के दिन स्नान, दान, व्रत और पूजा-पाठ से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहीं इस दिन पितरों की शांति के लिए किया गया कर्मकांड भी फलीभूत होता है।

अमावस्या तिथि आरंभ – (21 मई 2020 रात्रि 9 बजकर 35 मिनट से)
अमावस्या तिथि समाप्त – (22 मई 2020 रात्रि 11 बजकर 7 मिनट पर )

अमावस्या के दिन पवित्र नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें।
सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों का तर्पण करें।
तांबे के पात्र में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के पुष्प डालकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
पितरों की आत्मा की शांति के लिए उपवास करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें।
पितृ दोष है से पीड़ित लोगों को पौष अमावस्य का उपवास कर पितरों का तर्पण अवश्य करना चाहिए।

ज्योतिष के अनुसार, अमावस्या तिथि को धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन-मनन के लिए यह माह श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते हैं।

जिस तरह से अमावस्या तिथि को चंद्रमा किसी को दिखाई नहीं देता है और उसका प्रभाव क्षीण होता है। इसी तरह का प्रभाव इंसान के जीवन में भी रहता है। अमावस्या को जन्म लेने वाले की कुंडली में चंद्र दोष रहता है और उस व्यक्ति का चंद्रमा प्रभावशाली नहीं रहता है।

 

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